Parenting Tips: मौजूदा दौर में पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ पहले की तुलना में कहीं ज्यादा वक्त गुजारते हैं, इसके बावजूद वो पिछले जेनेरेशन के मुकाबले अधिक ध्यान देने के बाद भी ज्यादा फिक्रमंद रहते हैं. गार्जियन का मानना है कि कमिटमेंट में कमी फ्यूचर में बच्चे की कामयाबी और हितों को नुकसान पहुंचा सकती है.


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स्वानसी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमी ब्राउन (चाइल्ड पब्लिक हेल्थ) ने 'द कन्वरसेशन' वेबसाइट को बताया कि इस तरह की सोच को नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ सकता है. पिता की तुलना में माता पर अपने बच्चों की देखभाल का ज्यादा सोशल प्रेशर पड़ रहा है जिससे शादीशुदा महिलाओं की सेहत पर बुरा असर हो रहा है. कोरोना वायरस महामारी के दौरान ऑनलाइन क्लासेज की वजह से मां को बच्चे के साथ टीचिंग के दौरान मौजूद रहना पड़ा जिससे दबाव और ज्यादा बढ़ गया था.


बच्चों पर कितना ध्यान दें?

अब एक बड़ा सवाल उठता है कि आखिर बच्चों पर कितना ध्यान दिया जाए? अगर बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए जो क्या भविष्य में इसके नुकसान देखने को मिलेंगे? क्या आप अपने बच्चे को इग्नोर कर सकते हैं? या फिर इसके उलट क्या बच्चे से ज्यादा घुल-मिल सकते हैं? अधिकतर पैरेंट्स का कहना होता है कि वो अपने बच्चों पर सही तरीके से ध्यान दे रहे हैं.


सही नजरिया जरूरी

इस बात में कोई शक नहीं चाइल्ड डेवलप्मेंट के लिए परवरिश का सही नजरिया होना जरूरी है. जब बच्चे की जरूरत को पैरेंट अच्छे और बेहतर सरीके से पूरी करते हैं इन दूसरे के बीच लगाव बढ़ जाता है. इससे उनका कॉन्फिडेंस बढ़ता है और फिर पोजिटिव, सोशल और इमोशनल डेवलप्मेंट होता है.


स्टडी से क्या हुआ हासिल?

रोमानिया देश में अनाथालयों के बच्चों पर एक स्टडी की गई, इन बच्चों को प्यार और देखभाल नॉर्मल बच्चों की तरह नहीं मिला था इसलिए इन्हें इमोशनल डेवलप्मेंट का मौका नहीं मिला था. चाइल्ड को अगर अर्ली एज में बातचीत करने वाला मिलेगा तो ये उनकी लिटरेसी स्किल के लिए खास तौर से अहम होगा. बच्चे तभी अपनी भावनाएं व्यक्त करेंगे जब उन्हें सुना जाएगा और उनका सपोर्ट किया जाएगा.


बच्चे को सहारे की जरूरत

चाइल्ड डेवलप्मेंट के लिए सहारे की जरूरत होती है. बच्चे गलतियां करने का मौका पाकर और खेल के दौरान मामूली जोखिम उठाकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और वो फैसला करते हैं कि किस एक्टिविटीज में हिस्सा लेंगे. इसके उलट जब बच्चे को रूटीन के जरिए कंट्रोल किया जाता है तब उनका रास्ता आसा होता. वो रोजमर्रा की जिंदगी के लिए जरूरी स्किल और लचीलापन विकसित करने के लिए जद्दोजहद कर सकते हैं. जब ऐसा लगता है कि ज्यादा केयर करने से बच्चों का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा तो पैरेंट्स ज्यादा ध्यान देते हैं.


एक बच्चे पर कितना ध्यान दिए जाने की जरूरत है, यह भी वक्त के साथ स्वाभाविक रूप से बदलता है. बच्चे बड़े होने के साथ-साथ फिजिकल और इमोशनल तौर पर डेवलप होते हैं, और माता-पिता जो इन बदलावों को अपनाते हैं, उन्हें आमतौर पर बेहतर नतीजे मिलते हैं.


हैरानी की बात ये है कि सबसे ज्यादा और सबसे कम प्रेशर महसूस करने वाले पैरेंट्स के बीच कोई अहम कनेक्शन नहीं पाया गया, जिससे पता चलता है कि आप अपने बच्चों के साथ कितना भी समय बिताएं, ये भावनाएं असल में कभी दूर नहीं होतीं. शायद यही सबसे अहम पहलू है. ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों पर पर्याप्त ध्यान देते हैं.