बच्चे की पढ़ाई में टीचर और पैरेंट्स का नजरिया बदलना क्यों है जरूरी? प्रेशर बनाने से नहीं चलेगा काम
आपने देखा होगा कि पहले के मुकाबले बच्चो पर मां-बाप के उम्मीदों का बोझ बढ़ता जा रहा है जो उनकी मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुंचा रहा है, ऐसे में नजरिया बदलना बेहद जरूरी है.
Child Mental Health: एक जमाना था जब मैट्रिक पास करना, फर्स्ट डिविजन लाना एक स्टूडेंट की लाइफ बड़ा लैंडमार्क माना जाता था, लेकिन आज के दौर में टीचर और पैरेंट्स दोनों की एक्सपेक्टेशंस बढ़ गई है, उन्हें 95 परसेंट मार्क्स में भी तसल्ली नहीं होती. माता-पिता तो बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ अलग-अलग स्पोर्ट्स में चैंपियन बनाना चाहते हैं. ये बिलकुल ऐसा है जैसे कि हम एक ही पेड़ में ढेर सारे वेरायटीज के फल की ख्वाहिश करें. शायद यही एक्सपेक्टेशन का बोझ है जिसकी वजह से बच्चों में सुसाइड की टेंडेंसी बढ़ रही है. आइए जानते हैं कि बच्चों के डेवलपमेंट के लिए एटीट्यूड बदलना क्यों जरूरी है.
बच्चे बन रहे हैं 'प्रोडक्ट'
बच्चों के मामलों के जानकार बीजू सबैस्टियन (Biju Sabastian) ने 'काउंसिल इंडिया' के कॉनवोकेशन सेरेमनी में बताया कि बच्चे अपने पैरेंट्स के लिए महज एक प्रोडक्ट बनते जा रहे हैं. माता-पिता को अपने लाडले और लाडलियों की मेंटल हेल्थ कि चिंता कम हैं, वो बच्चों से ब्राउनी प्वॉइंट्स हासिल करना चाहते हैं. इसका मतलब ये है कि पैरेंट्स अपने बच्चों को नामी-गिरामी और महंगे स्कूल में भेजते हैं, उनसे टेनिस और बास्केट बॉल सीखने को कहते हैं, साथ ही 90 परसेंट से ज्यादा मार्क की भी डिमांड करते हैं जिससे सोसाइटी में उनकी इज्जत बढ़े.
बच्चों पर एक्पेक्टेशन का बोझ
कॉम्पिटीशन के इस दौर में, माता-पिता अपने बच्चों के लिए हर फील्ड में अपॉर्चुनिटी की तलाश करते रहते हैं और वो नन्हे-मुन्नों पर अनरियलिस्टिक एक्पेक्टेशन का बोझ डालते हैं. चाइल्ड साइकोलॉजी और बच्चे की हॉबी को समझे बिना, बच्चों को बहुत कम उम्र में अलग-अलग फील्ड में अवसरों का पता लगाने के लिए भेज देते हैं. शुरुआती दिनों में अगर बच्चा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है तो मां-बाप गुस्सा भी हो जाते हैं.
चंचल बच्चों को कम न समझें
टीचर और पैरेंट्स को इस बात को समझना होगा कि जो बच्चा जितना ज्यादा चंचल दिमाग का है वो उतना ही क्रिएटिव हो सकता है. आपको जरूरत है कि उस बच्चे के असल टैलेंट का पता लगाया जाए. आपने देखा होगा कि दुनियाभर में कई कामयाब लोगों के स्कूल और कॉलेज में मार्क्स इतने अच्छे नहीं आते थे.
हर बच्चे का आंकलन जरूरी
चाइल्ड एक्सपर्ट पूजा गहरोत्रा (Pooja Gahrotra) का मानना है कि स्कूल में हर बच्चे का साइकोएनालिसिस होना जरूरी है, क्योंकि जरूरी नहीं है कि जो बच्चा नॉर्मल नजर आ रहा है वो असल में नॉर्मल हो. इससे बच्चों के बीच मेंटल हेल्थ के गैप का पता चल पाएगा और फिर जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं.
शेडो टीचर की जरूरत क्यों है?
एलेनहाउस पब्लिक स्कूल की वाइस प्रिंसिपल महिमा भट्ट ((Mahima Bhat) के मुताबिक स्पेशल नीड वाले चाइल्ड के लिए शेडो टीचर बच्चों एक पर्सनल गाइड की तरह होता है. यानी जैसे साया हर जगह आपके साथ चलता है वैसे ही ऐसे शिक्षक बिलकुल जरूरतमंद बच्चों के साथ रहते हैं. कुछ खास चीजें पूरे क्लास को न पढ़ाकर सिर्फ स्पेशल नीड वाले बच्चों को पढ़ाई जाती है. आप इसके लिए स्पेशल प्लान और तरीके सोच सकते हैं जो उनको सामाजिक, भावनात्मक और मोटिवेशनल नीड को पूरा कर सके.