अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें सांस की नली (ब्रोंकाई) सूज जाती है, जिससे फेफड़ों में हवा का फ्लो ब्लॉक हो जाता है. इस वजह से मरीजों को खांसी, सांस लेने में तकलीफ और घरघराहट जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ता है. कुछ मामलों में अस्थमा का ट्रिगर आसानी से पहचाना जा सकता है, जैसे नए वातावरण में जाना, पालतू जानवर रखना, नई दवा लेना या मौसम बदलना/ प्रदूषण. हालांकि, ज्यादातर मामलों में ट्रिगर ढूंढना मुश्किल होता है.


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अगर आपमें ऊपर बताए गए लक्षण दिखाई देते हैं, तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है. डायग्नोस के लिए डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री का आकलन करेंगे, शारीरिक जांच करेंगे और फेफड़ों की वर्किंग कैपेसिटी और सांस लेने के पैटर्न का मूल्यांकन करने के लिए लंग फंक्शन टेस्ट करवाएंगे.


नोएडा में स्थित फोर्टिस अस्पताल में पल्मोनोलॉजी के अतिरिक्त डायरेक्टर डॉ. मयंक सक्सेना बताते हैं कि डाग्नोस  के बाद, डॉक्टर आमतौर पर एक होलिस्टिक ट्रीटमेंट प्लान बनाते हैं, जिसमें सिर्फ इनहेलर ही शामिल नहीं होते हैं. हालांकि, इनहेलर अस्थमा के उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. इसके अलावा, सांस लेने के व्यायाम और प्राणायाम योग जैसी गैर-औषधीय विधियां भी काफी मदद करती हैं. इसके साथ ही धूम्रपान छोड़ना और लाइफस्टाइल में बदलाव लाना जरूरी है, ताकि एसिडिटी जैसी छोटी-मोटी बीमारियों को भी कंट्रोल किया जा सके.


इनहेलर के मिथक को तोड़ें
बहुत से लोगों को लगता है कि इनहेलर की आदत लग जाती है और एक बार शुरू करने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है. यह एक मिथक है. इनहेलर दवा पहुंचाने का एक तरीका है जो सुनिश्चित करता है कि शरीर को कम से कम आवश्यक मात्रा में दवा मिले. ठीक होने के बाद, डॉक्टर से सलाह करके धीरे-धीरे इनहेलर की मात्रा कम की जा सकती है. समस्या तब होती है जब मरीज खुद से दवा का सेवन बंद कर देते हैं या डॉक्टर की सलाह के बिना खुराक कम कर देते हैं.


बुजुर्गों का ख्याल रखें
अस्थमा के मरीजों, खासकर बुजुर्गों को फ्लू और न्यूमोकोकल वैक्सीन लगवाने से संक्रमण से बचाव में मदद मिल सकती है. आमतौर पर भोजन पर कोई पाबंदी नहीं होती है, सिवाय इसके कि किसी खाने से एलर्जी हो. अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसे सही इलाज से आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है.