पहले चरण में कम मतदान से बढ़ गई आयोग और मतदाताओं की जिम्मेदारी
राजनैतिक दलों ने इस बार प्रचार अभियान उतना आक्रामक नहीं रखा है जितना पिछले लोकसभा चुनाव में था.
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 (lok sabha elections 2019) के लिए पहले चरण की 91 सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान हो गया. अगर छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो मतदान अनुशासित और शांतिपूर्ण रहा. पहले चरण में देश के 20 राज्यों में वोट पड़े. यह चरण सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उत्तराखंड के लिए रहा. आंध्र प्रदेश में सभी 25 लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिए 11 अप्रैल को वोट पड़ गए, प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी साथ ही हुए हैं. इसी तरह तेलंगाना की सभी 17 लोकसभा सीटों के लिए भी मतदान हो गया. उत्तराखंड की सभी पांच लोकसभा सीटों पर भी कल वोट पड़ गए. इस तरह इन तीन राज्यों में चुनाव पूरी तरह संपन्न हो गया और नतीजों के लिए इन राज्यों को एक महीने से ज्यादा का इंतजार करना है.
इन तीन राज्यों के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ और महाराष्ट्र की 7, बिहार की चार, असम की पांच और जम्मू कश्मीर की दो लोकसभा सीटों पर भी वोट पड़ गए.
लेकिन वोटिंग के पहले चरण में एक बात उभर कर यह भी सामने आई कि सभी राज्यों में मतदान का प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनाव से कम हो गया. आंध्र प्रदेश में वोटिंग परसेंट में जबरदस्त गिरावट आई. यहां पिछले लोकसभा चुनाव में 78.3 फीसदी वोट पड़े थे जो इस बार घटकर 66 फीसदी रह गए. वोटिंग में 12 फीसदी की कमी बहुत ज्यादा दिखाई देती है. तेलंगाना में वोटिंग परसेंट 68.8 फीसदी से घटकर 60 फीसदी रह गया. वहीं असम में भी वोटिंग में 10 फीसदी की गिरावट आई. अगर इन राज्यों में वोटिंग में बहुत तेज गिरावट आई है तो यूपी, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राजनीति को पलटने वाले राज्यों में भी वोटिंग परसेंट में मामूली गिरावट दर्ज की गई है.
मतदान में गिरावट अप्रत्याशित
मतदान में आई यह गिरावट अप्रत्याशित है, क्योंकि पिछले कुछ साल से देश में कुछ अपवादों को छोड़कर हर चुनाव में मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ता जा रहा था. इसकी एक वजह तो लोगों में आई लोकतांत्रिक जागरूकता है. पिछले कुछ वर्ष में जिस तरह से वोट डालने के बाद सेल्फी खींचने और सोशल मीडिया पर फोटो डालने का चलन बढ़ा है, उससे मध्यम वर्ग और युवाओं में मतदान को लेकर जागरूकता बढ़ी है. दूसरी वजह मतदाता सूचियों को दुरस्त किया जाना भी रहा है. इसके चलते मतदाता सूचियों से फर्जी या पलायन कर गए या दिवंगत हो चुके लोगों के नाम चुस्ती से हटा दिए थे.
इस बार भी निर्वाचन आयोग ने लोगों को वोट देने के लिए प्रोत्साहित किया था लेकिन वोटिंग बढ़ने के बजाय घट गई. अभी यह चुनाव का पहला चरण है और मौसम भी अभी अपेक्षाकृत उतना गर्म नहीं हुआ है. जैसे-जैसे चुनाव अप्रैल के अंत और मई के मध्य में पहुंचेगा उत्तर और मध्य भारत में तापमान 47 डिग्री तक पहुंचेगा. ऐसी चिलचिलाती धूप और लू में मतदाता के लिए वोटिंग के लिए घर से निकलना और कठिन होगा.
आक्रामक नहीं दिख रहा प्रचार
ऐसे में राजनैतिक दलों को भी चुनाव आयोग के साथ चुनाव में गर्माहट लानी होगी. लेखक ने पहले चरण के मतदान के दौरान पश्चिमी यूपी की कुछ सीटों का जायजा लिया. यहां सबसे बड़ा फर्क यह नजर आया कि राजनैतिक दलों ने इस बार प्रचार अभियान उतना आक्रामक नहीं रखा है जितना पिछले लोकसभा चुनाव में था. दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और नोएडा जैसे लोकसभा क्षेत्रों में इस बार भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और गठबंधन तीनों की तरफ से बड़े होर्डिंग और बैनर नहीं दिखाई दिए.
पिछले ज्यादातर चुनाव में वोटिंग के दिन बीजेपी केंद्रीय स्तर से प्रमुख अखबारों में फ्रंट पेज का फुल पेज विज्ञापन और अंदर के पन्नों में विज्ञापन देती आई है, लेकिन इस बार बीजेपी ने पेज वन पर सिर्फ आधा पेज विज्ञापन दिया. कांग्रेस ने केंद्रीय स्तर पर विज्ञापन जारी नहीं किया, हां गाजियाबाद में अंदर के पन्ने पर कांग्रेस के स्थानीय प्रत्याशी ने फुल पेज विज्ञापन दिया. गठबंधन विज्ञापन के मामले में बिलकुल ही सुस्त नजर आया.
कोई भी प्रचार वीडियो नहीं दिख रहा पॉपुलर
यानी इस चुनाव में मतदाताओं को अपनी तरफ रिझाने के लिए राजनैतिक दलों ने उस तरह का आक्रामक प्रचार अब तक नहीं किया है जैसा पिछले लोकसभा चुनाव में हुआ था. यही नहीं, इस बार वैसा कोई वीडियो भी पॉपुलर नहीं हुआ है, जिस तरह का वीडियो ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ प्रचार अभियान का पिछले चुनाव में पॉपुलर हुआ था. पिछले लोकसभा चुनाव से पहले यूपीए सरकार ने और बाद में कांग्रेस ने भी टीवी पर खूब विज्ञापन दिए थे, लेकिन इस बार ‘अब होगा न्याय’ का विज्ञापन ही कुछ आकर्षक बना है. लेकिन दोनों पार्टियों के टीवी विज्ञापन की आवृत्ति भी पिछली बार से कम है.
जाहिर है देश के छठवें हिस्से में पहले चरण में मतदान के बाद राजनैतिक दल अपना फीडबैक हासिल करेंगे. इसके बाद उनका उत्साह या संभावना बनेगी. ऐसे में संभव है कि राजनैतिक दल लोगों को ज्यादा उत्साहित करें. हो सकता है उनके मुद्दे ध्यान से सुनने के बाद वोटर पहले से ज्यादा संख्या में वोट देने निकलें. लेकिन फिलहाल तो घटता वोटिंग अनुपात लोकतंत्र के लिए एक स्वस्थ संदेश नहीं है.