नई दिल्ली: प्रचीन शहरों में गिने जाने वाला हाथरस, अलीगढ़ डिवीजन का ही हिस्सा है. इसका इतिहास महाभारत और हिन्दू धर्मकथाओं से जुड़ा हुआ है और यहां ब्रजभाषा बोली जाती है. ये एक ऐसा स्थान है जहां परजाट, कुषाण, गुप्ता और मराठा सबका शासन रहा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों में से एक हाथरस मुस्लिम-जाट वोटरों के प्रभाव वाली सीट है. यही कारण रहा कि बीजेपी-आरएलडी को यहां लगातार जीत मिलती रही है. 


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पिछले करीब दो दशक से यहां पर भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व रहा है. हाथरस सीट पर मुस्लिम-जाट का समीकरण हावी रहता है, यही कारण है कि मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी इस सीट पर प्रबल दावेदार रहती है. हाथरस लोकसभा सीट आरक्षित सीटों में आती है. साल 2014 में जमीनी नेता कहे जाने वाले राजेश दिवाकर ने यहां पर विजयी पताका लहराया. 


2014 का राजनीतिक इतिहास
साल 2014 में यहां पर बीजेपी के राजेश दिवाकर ने बसपा के मनोज कुमार को 3,26,386 वोटों से हराकर ये सीट हासिल की थी. साल  2014 के चुनाव में इस सीट पर बसपा दूसरे, सपा तीसरे, आरएलडी चौथे और आप 5वें नंबर पर रही थी. साल 2014 में 17,58,927 मतदाताओं ने हिस्सा लिया था. इसमें बीजेपी और बीएसपी के बीच मात्र 31.11 प्रतिशत वोटों का अंतर था.


ये है राजनीतिक इतिहास
इस सीट पर 1962 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस पार्टी ने जबरदस्त जीत दर्ज की थी. उसके बाद 1967, 1971 में भी यहां कांग्रेस का परचम लहराया. 1977 में चली सत्ता विरोधी लहर में भारतीय लोक दल ने जीत दर्ज की, जबकि 1984 में भी यहां कांग्रेस ने वापसी की. 1989 में हुआ चुनाव यहां जनता दल के खाते में गया था. 1991 के बाद से ही ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रही है. 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने एकतरफा जीत दर्ज की. इस दौरान बीजेपी के कृष्ण लाल दिलेर 1996-2004 तक सांसद रहे. 2009 में यहां राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की, हालांकि तब रालोद-बीजेपी का गठबंधन था. वहीं 2014 में तो बीजेपी के राजेश कुमार दिवाकर ने यहां से प्रचंड जीत दर्ज की.