पहले चरण का चुनाव प्रचार खत्म होने से एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनाव संकल्प पत्र जारी कर दिया. संविधान में वर्णित चुनाव घोषणा पत्र शब्द से परहेज करते हुए, बीजेपी पिछले कुछ चुनाव से संकल्प पत्र या दृष्टि पत्र शब्द का इस्तेमाल करती आई है. ऐसे में पहले चरण के मतदाताओं के पास कम से कम तीन दिन होंगे बीजेपी के चुनावी वादों को समझने और उनसे प्रभावित होने के लिए.


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भारतीय जनता पार्टी के भव्य मुख्यालय में संकल्प पत्र पेश करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वित्त मंत्री अरुण जेटली मंचासीन थे. इन सभी नेताओं ने संकल्प पत्र के साथ अपना संबोधन भी दिया.



बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में धारा 370 का मुद्दा दुहराया है. पार्टी ने यह तो नहीं बताया कि अगर वह फिर से सत्ता में आती है, तो उसी कार्यकाल में धारा हटा देगी. पार्टी ने इतना भर कहा कि धारा 370 पर वह जनसंघ के जमाने से चले आ रहे अपने रुख पर कायम है. इसी तरह पार्टी ने धारा 35ए के खिलाफ होने की अपनी बात दुहराई. पार्टी ने सर्व सहमति से राम मंदिर निर्माण का वादा भी दुहराया है.


भाजपा ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को अपनी सबसे बड़ी कामयाबी बताया. इसके अलावा एक बड़ी घोषणा यह की कि 6000 रुपये सालाना की जो किसान सम्मान निधि अभी सिर्फ सीमांत किसानों को दी जा रही है, वह सभी किसानों के लिए लागू की जाएगी. पार्टी ने छोटे दुकानदारों के लिए पेंशन देने का वादा भी किया.


अब जरा इस संकल्प पत्र की तुलना पिछले हफ्ते पेश हुए कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र से की जाए. कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र की मुख्य हेडलाइन रखी 72000, गरीबी पर वार. इसके बाद उसकी दूसरी बड़ी घोषणा 22 लाख सरकारी पदों को भरने की रही.



 


अगर गौर से देखें तो पार्टी की रणनीति इन दो घोषणाओं पर चुनाव लड़ने की है. पार्टी के विज्ञापनों को देखें तो राहुल गांधी पार्टी का चेहरा जरूर हैं, लेकिन पार्टी चुनाव 72000 रुपये के मुद्दे पर लड़ रही है.


दूसरी तरफ बीजेपी का घोषणापत्र देखें तो ऐसा नहीं लगता कि पार्टी एक या दो मुद्दों को ऊपर उठाकर चुनाव लड़ना चाहती है. पार्टी किसी नए बड़े वादे के बजाय देश में पनपी सैनिक राष्ट्रवाद की भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अतिमानवीय छवि के आधार पर ही चुनाव मैदान में कूद रही है.


संकल्प पत्र पेश करते समय बीजेपी नेताओं ने जो तकरीर की उससे भी ऐसा लगा कि पार्टी भारत के प्राचीन इतिहास और मोदी सरकार की भावनात्मक उपलब्धियों को गिनाने में जुटी है. दिलचस्प बात यही रही कि मौजूदा सरकार का कार्यकाल 2019 तक का था लेकिन मोदी सरकार ने अपने कामों का लक्ष्य 2022 रखा था. इसी तरह नई सरकार का कार्यकाल 2024 तक होगा, लेकिन बीजेपी ने नई सरकार के लिए भी लक्ष्य 2022 ही रखा है. यह सही है कि 2022 में भारत की आजादी को 75 साल पूरे होंगे, लेकिन कोई पार्टी सरकार के आधे कार्यकाल के लिए ही लक्ष्य तय करे, यह जरा अजीब सा लगता है.



बीजेपी के संकल्प पत्र को जैसे जैसे पढ़ते जाइये यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी का असली नारा एक ही है- मोदी है तो मुमकिन है.


जाहिर है, ऐसे में यह चुनाव दो नेताओं के बीच नहीं होने जा रहा है. यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी नहीं होने जा रहा है. यह चुनाव मोदी है तो मुमकिन है बनाम 72000 गरीबी पर वार की पिच पर लड़ा जाना है. ऐसे में अगर बीजेपी जीतती है तो यह विशुद्ध रूप से पीएम मोदी के करिश्मे की जीत होगी. और अगर कांग्रेस अच्छा करती है तो यह राहुल के करिश्मे की नहीं 72000 के उनके नारे की जीत होगी.


एक तरह से देखा जाए तो 2019 को चुनाव कांग्रेस और भाजपा की राजनीति में बुनियादी बदलाव का भी चुनाव है. भाजपा जनसंघ के जमाने से अपने मुद्दों पर चुनाव लड़ती आई है. वहीं कांग्रेस पंडित जवाहरलाल नेहरू के जमाने से राजीव गांधी के जमाने तक व्यक्ति केंद्रित राजनीति करती आई है. लेकिन इस चुनाव में दोनों पार्टियों ने परंपरा की अदला-बदली कर ली है. अब बीजेपी व्यक्ति के सहारे है और कांग्रेस मुद्दों के सहारे. रणनीति का यह बदलाव क्या चुनाव नतीजों में कोई बदलाव कर पाएगा.


(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)