नई दिल्लीः मध्य प्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट राज्य की वीआईपी सीटों में से एक है. यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच का मुकाबला काफी रोचक होता है. हालांकि, यहां सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने ही राज किया है. राजगढ़ की चुनावी जंग इसलिए भी रोचक है क्योंकि यहां दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह आमने-सामने रह चुके हैं. ऐसे में यह मुकाबला दो पार्टियों से ज्यादा दो भाईयों का रहा. बता दें दिग्विजय सिंह यहां से 2 बार तो लक्ष्मण सिंह 5 बार सांसद चुने जा चुके हैं. फिलहाल यहां से भाजपा के रोडमल नागर यहां से सांसद. 


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राजनीतिक इतिहास
मध्य प्रदेश के अहम शहरों में से एक राजगढ़ में पहला चुनाव 1962 में हुआ, जिसमें निर्दलीय उम्मीदवार भानुप्रकाश सिंह को जीत मिली. इसके बाद 1967 में कांग्रेस की रजनी देवी जीत मिली. वहीं 1971 में भी कांग्रेस के ही उम्मीदवार यहां से सांसद चुने गए. 1977 में जनता दल के नरहरि प्रसाद साईं, 1980 में जनता पार्टी के वसंत कुमार रामकृष्ण, 1984 में दिग्विजय सिंह, 1989 में प्यारेलाल खंडेलवाल और 1991 में फिर दिग्विजय सिंह को ही राजगढ़ में विजय मिली. 


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इसके बाद 1994 में दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को जीत मिली, जिसके बाद उन्होंने लगातार 1996, 1998 और 1999 तक यह जीत कायम रखी. 2004 में भी लक्ष्मण सिंह ही इस सीट से सांसद चुने गए, लेकिन उन्होंने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा. 2009 में यहां कांग्रेस के नारायण सिंह ने राजगढ़ में विजय हासिल की तो 2014 में यह सीट भाजपा के खाते में आ गई और रोडमल नागर यहां से सांसद चुने गए.



2014 का राजनीतिक समीकरण
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के रोडमल नागर ने कांग्रेस के अलांबे नारायण सिंह को 2,28,737 वोटों के अंतर से हराया था. रोडमल नागर को इस चुनाव में 5,96,727 तो कांग्रेस के अलांबे नारायण सिंह को 3,67,990 मत मिले थे. वहीं राजगढ़ में तीसरे स्थान पर बसपा रही थी, जिसे 1.37 फीसदी वोट मिले थे.


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सांसद रोडमल नागर का रिपोर्ट कार्ड
राजगढ़ सांसद रोडमल नागर को उनके निर्वाचन क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए 25.35 करोड़ फंड आवंटित किया गया था. जिसमें से उन्होंने 22.50 करोड़ खर्च कर दिया, जबकि 2.84 करोड़ फंड बिना खर्च किए रह गया. संसद में रोडमल नागर की उपस्थिति 95 फीसदी रही. इस दौरान उन्होंने 261 डिबेट में हिस्सा लिया और 463 सवाल किए.