नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश का सीतापुर यहां के प्राचीन शहरों में से एक है, जिसका नाम भगवान राम की पत्नी सीता के नाम पर पड़ा. ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम और देवी सीता कुछ वक्त के लिए यहां आकर रूके थे. इसलिए शहर के राजा विक्रमादित्य ने इस शहर का नाम सीतापुर रख दिया था. राम और सीता ने यहां स्नान करके रावण के वध करके कलंक को धोया था. राजनीतिक दृष्टि से देंखे तो ये सीट बहुजन समाज पार्टी का गढ़ मानी जाती है.


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उत्तर प्रदेश की लोकसभा संख्या-30 यानि सीतापुर में अभी बीजेपी का कब्जा है. साल 2014 में चली बीजेपी की मोदी लहर में बसपा को इस सीट से हाथ धोना पड़ा. पिछले चुनाव में यहां बहुजन समाज पार्टी का दामन छोड़ भारतीय जनता पार्टी में आए राजेश वर्मा ने जीत हासिल की.


साल 2014 में ये था जनादेश
2014 में के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के राजेश वर्मा ने बसपा की दिग्गज नेता कैसर जहान को हराया था और ये सीट अपने नाम की थी. पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा यहां से दूसरे, सपा तीसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर रही थी. साल 2014 में करीब 16 साल बाद यहां बीजेपी कमल खिलाने में सफल हो सकी थी. साल 2014 में राजेश वर्मा को कुल 40 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बसपा की ओर से कैसर जहां को कुल 35 फीसदी वोट मिले. 



  
ये राजनीतिक इतिहास
साल 1952 के हुए चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से जवाहर लाल नेहरु के चचेरे भाई श्यामलाल की पत्नी उमा नेहरु ने चुनाव जीता. साल 1957 में फिर कांग्रेस ने उन्हें चुनावी मैदान में उतारा और फिर उन्होंने जीत दर्ज कराई. साल 1962, 1967 के चुनाव में यहां भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज की थी औऱ साल 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने यहां वापसी की. 1977 में आपातकाल के बाद भारतीय लोकदल यहां से चुनाव जीता. साल 1980 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और लगातार तीन बार यानि साल 1984 और 1989 में जीत दर्ज की. 1991 में बीजेपी ने कांग्रेस को हराया. 1996 में हुए चुनावों में सपा ने इस सीट पर खाता खोला, लेकिन साल 1999 से लेकर 2009 तक बहुजन समाज पार्टी ने लगातार तीन बार चुनाव जीता. लेकिन, 2014 का चुनाव मोदी लहर के दम पर बीजेपी के खाते में ये सीट गई. सपा-बसपा गठबंधन के बाद इस सीट पर मुकाबला रोचक हो गया है.