मायावती खुद को क्यों मानती हैं `अपराजिता`
1985 यूपी की बिजनौर सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में मायावती ने एक बार फिर भाग्य आजमाया.
नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने कहा है कि वह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. मायावती का कहना है कि कई बार कड़े फैसले लेने पड़ते हैं. उनका कहना है कि मैं कभी भी चुनाव लड़ सकती हूं. आपको बता दें कि चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहने वाली मायावती ने सीएम के रूप में अपना अंतिम कार्यकाल भी बिना विधानसभा चुनाव लड़े पूरा किया था. बहनजी यूपी विधान परिषद की सदस्य बनीं थी. इसके बाद से वह राज्यसभा सांसद रही थी.
कैराना और बिजनौर से दी थी दस्तक
मायावती ने अपना पहला लोकसभा चुनाव साल 1984 में यूपी की कैराना सीट से लड़ा था. अपने पहले चुनाव में मायावती को सफलता नहीं मिली थी. इसके बाद साल 1985 यूपी की बिजनौर सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में मायावती ने एक बार फिर भाग्य आजमाया. इस बार भी उन्हें सफलता नहीं मिली और वह कांग्रेस की मीरा कुमार से हार गईं. इस दौरान जनता दल से रामविलास पासवान से भी उनका मुकाबला था. पासवान दूसरे नंबर पर रहे थे.
हरिद्वार सीट से मिली राजनीति पहचान
साल 1987 में हरिद्वारा लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एक बार मायावती बीएसपी की प्रत्याशी बनीं. लेकिन इस बार भी उन्हें कांग्रेस के ही नेता ने हराया. इस सीट से कांग्रेस के राम सिंह जीते. इस बार दूसरे नंबर पर आकर मायावती भारतीय राजनीति में अपनी हनक साबित कर चुकी थी. कांग्रेस नेता को हरिद्वारा लोकसभा उपचुनाव में 1 लाख 49 हजार वोट मिले थे. वहीं मायावती 1 लाख 25 से ज्यादा वोट मिले.
साल 1989 में एक बार फिर मायावती बिजनौर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरी और पहली बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुईं. मायावती ने जनता दल के मंगलराम प्रेमी को करीब 9 हजार वोटों से हराया. इसी दौरान मायावती अंबेडकर नगर से भी चुनाव जीतीं. इसके बाद साल 1991 में दोबारा हुए लोकसभा चुनाव में मायावती बिजनौर सीट से बीजेपी में जाने वाले मंगलराम से हार गईं थी.
10 साल विधायक और 4 बार सीएम
साल 1991 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद मायावती ने यूपी की राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गईं और उन्होंने पहले समाजवादी पार्टी और बाद में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई. साल 1994 में मायावती पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गईं.
अंबेडकर लोकसभा सीट से मायावती 1998-99, 1999-2002 और 2004-2007 तक सांसद रहीं. इसके बाद साल 2007 में यूपी विधानसभा चुनावों में मायावती की बीएसपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई और बहनजी विधान परिषद के सदस्य के रूप में सरकार की नेता चुनी गईं.
साल 2012 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में मायावती की बीएसपी की बड़ी हार हुई. अप्रैल 2012 से जुलाई 2017 तक मायावती राज्यसभा की सदस्य रहीं. सहारनपुर में दलित विरोधी हिंसा पर संसद में अपनी बात नहीं रखे देने से नाराज मायावती ने 20 जुलाई 2017 को राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.