मैसूर लोकसभा सीट: जेडीएस के गढ़ में `बीजेपी के ही दो सिपाहियों` में मुकाबला
मैसूर लोकसभा सीट से कांग्रेस ने यहां पर सीएच विजयशंकर को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं बीजेपी ने मौजूदा सांसद प्रताप सिम्हा को टिकट दिया है. विजय शंकर बीजेपी से ही कांग्रेस में आए हैं. वह 1998 और 2004 में बीजेपी के टिकट पर मैसूर लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.
मैसूर: कर्नाटक में मैसूर क्षेत्र को जेडीएस प्रमुख एचडी देवेगौड़ा के प्रभाव वाला माना जाता है. इसका कारण है यहां पर वोक्कालिगा वोटर्स की संख्या. लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन में ये सीट कांग्रेस को मिली है. लेकिन ये भी तय है कि बिना जेडीएस के सहयोग से कांग्रेस का यहां पर जीतना मुश्किल होगा. इस बार कांग्रेस ने यहां पर सीएच विजयशंकर को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं बीजेपी ने मौजूदा सांसद प्रताप सिम्हा को टिकट दिया है. विजय शंकर बीजेपी से ही कांग्रेस में आए हैं. वह 1998 और 2004 में बीजेपी के टिकट पर मैसूर लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.
दक्षिण कर्नाटक में मैसूर क्षेत्र में जेडीएस का प्रभाव कितना है इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि उसके 28 में से 8 विधायक इसी क्षेत्र से आते हैं. 2014 के चुनाव में प्रताप सिम्हा यहां से 31 हजार वोट से जीत पाए थे, उस चुनाव में जेडीएस प्रत्याशी भी मैदान में था. इसलिए इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी के लिए अपनी जीत दोहरा पाना मुश्किल है.
इतना मजबूत गढ़ होने के बावजूद इस सीट पर जेडीएस नहीं जीता
मैसूर भले देवेगौड़ा का गढ़ माना जाता हो, लेकिन इस लोकसभा सीट पर आज तक कभी भी जनता दल या जेडीएस का कोई उम्मीदवार नहीं जीता है. 1951 से अब तक इस सीट पर 13 बार कांग्रेस और 3 बार बीजेपी ने जीत हासिल की है. इनमें से दो बार बीजेपी के टिकट पर सीएच विजयशंकर जीते हैं, जो इस बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं.
प्रताम सिम्हा को अगर वोक्कालिगा वोट मिला तो कांग्रेस के लिए मुश्किल
इस सीट पर कांग्रेस के सीएच विजयशंकर को उतारने का फैसला पूर्व सीएम सिद्दरमैया को जाता है. सिद्दरमैया की तरह विजयशंकर कुरबा जाति से आते हैं. वहीं प्रताप सिम्हा वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. अगर उन्हें वोक्कालिगा वोट एकमुश्त मिला तो वह कांग्रेस उम्मीदवार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, क्योंकि कर्नाटक में ब्राह्मण और लिंगायत वोटर बीजेपी समर्थक माने जाते हैं.