पटना : 2019 आम चुनाव को लेकर बिहार के कई दिग्गज नेताओं के सपने चूर-चूर हो गए हैं. धीरे धीरे उन नेताओं के अरमान बयानों के जरिए बाहर आ रहे हैं. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के वरिष्ठ नेता अली अशरफ फातमी के बहाने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का भी दर्द बाहर आया है. शिवानंद तिवारी ने कहा है कि वो चुनाव लड़ना चाहते थे. उन्हें टिकट नहीं मिला, लेकिन वो फातमी की तरह अलग गुट नहीं बनाएंगे. क्योंकि देश के हालात इस बात की इजाजत नहीं देती है.


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महागठबंधन में पहले सीट शेयरिंग को लेकर घमासान छिड़ा था और अब सीट नहीं मिलने को लेकर नेताओं के दर्द बाहर आ रहे हैं. आरजेडी में कुछ ऐसी ही तस्वीर देखने को मिल रही है. पार्टी के सीनियर नेता अली अशरफ फातमी के बाद अब शिवानंद तिवारी ने भी खुलासा किया है कि वह चुनाव लड़ना चाहते थे. शिवानंद तिवारी आरा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला.


दरअसल, शिवानंद, फातमी की ओर से बगावती तेवर अपनाए जाने पर जी मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे. शिवानंद तिवारी ने कहा कि फातमी दल से अलग नहीं जाएंगे. फातमी इस उम्र में ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि वो अब कहां जाएंगे. बगावत कर चुनाव लड़ना उनके समर्थकों के लिए भी संकट पैदा करेगा. ऐसे में वो चुनाव जीत भी नहीं सकते. आज देश का मुसलमान नरेन्द्र मोदी की सरकार को हर हाल में हटाना चाहता है. ऐसे में फातमी की कोशिश एनडीए को सपोर्ट जैसा होगा.


शिवानंद तिवारी ने कहा कि मुझे भी चुनाव लड़ने की इच्छा थी. फातमी तो कई बार लोकसभा के सदस्य रहे. केन्द्र में मंत्री भी रहे. लेकिन मैं कभी लोकसभा नहीं जा सका. चुनाव लड़ना चाहता था. लेकिन टिकट नहीं मिला . मैं फातमी की तरह गुट नहीं बना रहा. क्योंकि देश के हालात इस बात के इजाजत नहीं देती. टिकट लेना, एमपी और एमएलए बनना ही नेताओं का मकसद नहीं होना चाहिए. मैं आरा से सीपीआई एमएल के उम्मीदवार का समर्थन करूंगा. उन्होंने मुझसे संपर्क भी किया है.


इधर, आरजेडी में टिकट नहीं मिलने को लेकर सीनियर नेताओं का दुख बाहर आने पर जेडीयू प्रवक्ता अजय आलोक ने तंज कसा है. अजय आलोक ने कहा है कि आरजेडी नेताओं का दर्द अब बाहर आ रहा है, लेकिन पार्टी के सीनियर लीडर क्या करें. वो टिकट के लिए पैसा दे नहीं सकते थे. यहां छोटे साहब बिना पैसों का टिकट दे नहीं सकते थे. हमें आरजेडी के सीनियर नेताओं के प्रति सहानुभूति है.


ये कहानी सिर्फ फातमी और शिवानंद तिवारी की ही नहीं है. बिहार में महागठबंधन में कई ऐसे सीनियर लीडर हैं, जिनके चुनाव लड़ने के सपने इस बार चूर-चूर हो गए. निखिल कुमार और शकील अहमद भी उन्हीं में से हैं और उनका भी दर्द बाहर आ चुका है.