Foreign Portfolio Investors: स‍िक्‍योर‍िटी एंड एक्‍सचेंज बोर्ड ऑफ इंड‍िया (SEBI) ने ऊंचे जोखिम वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की तरफ से अतिरिक्त खुलासे को जरूरी करने का प्रस्ताव किया है. इससे न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) की जरूरत को लेकर किसी तरह की कोताही से बचा जा सकेगा. सेबी (SEBI) के संज्ञान में आया है कि कुछ एफपीआई (FPI) ने अपने इक्‍व‍िटी पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा एक कंपनी में केंद्रित किया हुआ है. कुछ मामलों में तो यह हिस्सेदारी लंबे समय से कायम और स्थिर है.


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बारीकी से जानकारी प्राप्त करने का प्रस्ताव किया
सेबी ने कहा, ‘इस तरह के केंद्रित निवेश से यह चिंता और संभावना बढ़ती है कि ऐसे कॉरपोरेट ग्रुप के प्रवर्तक या अन्य निवेशक न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता जैसी नियामकीय आवश्यकताओं को दरकिनार करने के लिए एफपीआई मार्ग का उपयोग कर रहे हैं.’ अपने परामर्श पत्र में नियामक ने उच्च जोखिम वाले ऐसे एफपीआई (FPI) से बारीकी से जानकारी प्राप्त करने का प्रस्ताव किया है जिनका निवेश एकल कंपनियों या कारोबारी ग्रुप में केंद्रित हैं.


प्रस्ताव के तहत ऐसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को स्वामित्व, आर्थिक हित और ऐसे कोषों के नियंत्रण के बारे में अतिरिक्त खुलासा करने की जरूरत होगी. इसके साथ ही नियामक ने जोखिम के आधार पर एफपीआई (FPI) का वर्गीकरण करने का सुझाव दिया है. इसके तहत सरकार और संबंधित इकाइयों मसलन केंद्रीय बैंक और सॉवरेन संपदा कोष को कम जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है.


पेंशन कोष और सार्वजनिक खुदरा कोष को मध्यम जोखिम के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इनके अलावा अन्य सभी एफपीआई को उच्च जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है.