Soldiers village of India: इंडियन आर्मी.. नाम ही काफी है. हो भी क्यों ना.. भारतीय सेना में सेवा देना न केवल देश की सुरक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह युवाओं के लिए एक गर्व का विषय भी है. इसी कड़ी में बिहार का एक गांव चर्चा में है. गया जिले के चिरियावां गांव में भारतीय सेना को लेकर भावना और भी गहरी है. यहां के युवा देश सेवा को न केवल अपने करियर के रूप में चुनते हैं, बल्कि इसे अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा मानते हैं. इस गांव को 'फौजियों का गांव' कहा जाता है. सबसे खास बात यह है कि यहां के युवाओं का एक अनोखा संकल्प है कि जब तक फौज में शामिल नहीं होंगे, तब तक शादी नहीं करेंगे.


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 इस गांव में 100 से ज्यादा लोग सेना में है


चिरियावां गांव चारों ओर से पहाड़ों से घिरा है और यहां के हर घर में एक फौजी है. इस गांव में 100 से ज्यादा लोग सेना में सेवा दे रहे हैं, और यहां के लोग सेना में शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. इस गांव में फौजियों के परिवारों का इतिहास बहुत पुराना है, कई परिवारों में तो तीन-चार पीढ़ियों से फौजी बनते आ रहे हैं. अब महिलाएं भी सेना में जाने के लिए तैयार हो रही हैं. यहां के लोग किसान होते हुए भी अपने बच्चों को सेना में करियर बनाने के लिए प्रेरित करते हैं.


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देवी माता का आशीर्वाद लेकर दौड़ते है लोग


गांव में एक प्रसिद्ध देवी माता का मंदिर है, जिसे लोग अपनी सफलता का कारण मानते हैं. यहां के युवा दौड़ लगाने से पहले माता के मंदिर में जाकर आशीर्वाद लेते हैं और फिर अपनी तैयारी में जुट जाते हैं. उनका विश्वास है कि देवी माता का आशीर्वाद ही उनकी सफलता की कुंजी है.  हालांकि, मोनू कुमार कहते हैं, "हम देवी माता का आशीर्वाद लेकर फौज में जाने की तैयारी करते हैं. यहां की परंपरा है कि जो भी युवक सेना में जाने का संकल्प करता है, वह शादी से पहले फौज में शामिल होने की शपथ लेता है. हमारी सफलता का राज यही है कि हम देवी माता के आशीर्वाद से कठिन मेहनत करते हैं."


आलोक रंजन बताते हैं कि


आलोक रंजन, जो हाल ही में अग्निवीर के रूप में सेना में शामिल हुए हैं, वो कहते हैं, "मुझे माता का आशीर्वाद मिला और अब मैं सेना में हूं. यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हमारे गांव से सेना में कई लोग गए हैं." जबकि लेफ्टिनेंट पद से रिटायर शिव शंकर सिंह बताते हैं, "यह गांव अपनी निष्ठा और समर्पण के लिए प्रसिद्ध है. जब किसी शादी या बड़े अवसर पर पूरे गांव के फौजी इकट्ठा होते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे बटालियन बन गई हो. हमारे गांव से फौजी से लेकर लेफ्टिनेंट और कर्नल तक बने हैं. यहां रिटायर फौजियों की भी तादाद बहुत है."


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सिपाही से लेकर लेफ्टिनेंट तक है


उन्होंने आगे कहा, "हमारे गांव से केवल थल सेना ही नहीं, बल्कि नेवी और एयरफोर्स में भी लोग भर्ती हुए हैं. हम चाहते हैं कि हमारे गांव से और अधिक फौजी निकलें और देश की सेवा में योगदान दें. मैं 1993 में सेना में शामिल हुआ था और 30 साल सेवा देने के बाद लेफ्टिनेंट पद से रिटायर हुआ." चिरियावां गांव के लोग अपनी मेहनत, समर्पण और माता के आशीर्वाद के साथ देश की सेवा में गर्व से जुटे हैं, और यह परंपरा आज भी जारी है.


--आईएएनएस