Human Poo Jet Fuel: बंदे में दम है बॉस, साइंस का चलाया जादू और मानव मल से बना डाला जेट फ्यूल
Science News: पिछले 20 साल से ग्लूस्टरशायर में लो-कार्बन फ्यूल्स तैयार करने वाले हेगेट ने कहा, नया ईंधन रासायनिक रूप से फॉसिल बेस्ड केरोसिन की तरह ही था. इसमें कोई फॉसिल कार्बन नहीं है. यह फॉसिल फ्री फ्यूल है.
कहते हैं कि साइंस का नाम ही एक्सपेरिमेंट है. हर बार कोई एक्सपेरिमेंट करने से कुछ नया ही निकलता है. लेकिन एक नई एविएशन कंपनी ने विमानों के लिए एक ऐसा ईंधन तैयार किया है, जो पूरी तरह मानव मल (Human Poop) से बनाया गया है. यह पढ़कर आप भी हैरान रह गए होंगे, लेकिन यह सच है. साउथ वेस्ट इंग्लैंड स्थित ग्लूस्टरशायर में मानव मल को कैरोसिन में तब्दील किया गया है.
फायरफ्लाई ग्रीन फ्यूल के सीईओ जेम्स हेगेट ने कहा, 'हम असल में कम कीमत वाला फीडस्टॉक ढूंढना चाहते थे जो काफी मात्रा में हो. और मानव मल बहुत ज्यादा मात्रा में है.' इंटरनेशनल एविएशन रेग्युलेटर्स ने स्वतंत्र जांच में पाया कि यह स्टैंडर्ड जेट फ्यूल से काफी मिलता-जुलता है. फायरफ्लाई टीम ने कार्नफील्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर फ्यूल की लाइफ साइकिल पर कार्बन के प्रभाव की जांच की. इससे यह नतीजा निकला कि फायरफ्लाई के ईंधन में स्टैंडर्ड जेट फ्यूल की तुलना में 90% कम कार्बन फुटप्रिंट्स हैं.
वाह! क्या कमाल का एक्सपेरिमेंट है
पिछले 20 साल से ग्लूस्टरशायर में लो-कार्बन फ्यूल्स तैयार करने वाले हेगेट ने कहा, नया ईंधन रासायनिक रूप से फॉसिल बेस्ड केरोसिन की तरह ही था. इसमें कोई फॉसिल कार्बन नहीं है. यह फॉसिल फ्री फ्यूल है.
हेगेट ने आगे कहा, 'यह सही है कि प्रोडक्शन में ऊर्जा का इस्तेमाल होगा. लेकिन जब हम फ्यूल की लाइफ साइकिल देखते हैं तो 90 प्रतिशत सेविंग्स आपको खुश कर देती है. हमें ऊर्जा का इस्तेमाल करना है लेकिन जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel) की तुलना में यह काफी कम है.' पूरी दुनिया में विमानों के कारण 2 प्रतिशत कार्बन एमिशन होता है, जिससे पर्यावरण पर असर पड़ता है. यह भले ही छोटा लगे लेकिन तेजी से बढ़ रहा है. एविएशन सेक्टर में कार्बन को कम करना ही सबसे चुनौती है.
इसे देखते हुए इलेक्ट्रिक विमान विकसित किए जा रहे हैं. इंग्लैंड के कॉटस्वोल्ड्स की एक कंपनी 2026 तक एक दर्जन यात्रियों के लिए हाइड्रोजन-इलेक्ट्रिक से चलने वाले विमान उड़ाने का वादा कर चुकी है. लेकिन अभी इसमें काफी वक्त लग सकता है. इसलिए कैरोसिन बनाने के लिए नए तरीके जोर पकड़ रहे हैं.
ऐसे शुरू किया सफर
ग्लॉस्टरशायर के एक छोटे से खेत में, हेगेट ने 20 साल पहले कारों और ट्रकों के लिए रेपसीड तेल को 'बायो-डीज़ल' में बदलना शुरू किया था. उनकी कंपनी ग्रीन फ्यूल्स, अब खाना पकाने के तेल को बायोडीजल में बदलने वाले डिवाइस बेचती है, जिसके ग्राहक पूरी दुनिया में हैं. इसके बाद उन्होंने ग्रीन जेट फ्यूल बनाने के रास्ते खोजने शुरू किए. उन्होंने वेस्ट ऑयल, खराब खाना के अलावा कृषि अवशेष पर भी हाथ आजमाया.
बाद में उन्होंने मानव मल पर एक्सपेरिमेंट किया. उन्होंने लंदन के इंपीरियल कॉलेज के कैमिस्ट डॉ सर्गियो लिमा से हाथ मिलाया. दोनों ने मिल एक प्रक्रिया तैयार की, जिससे मानव मल को जेट फ्यूल में तब्दील किया जा सकता है. उन्होंने इसे बायो क्रूड नाम दिया. काले रंगा का यह तेल कैमिकल तौर पर क्रूड ऑयल जैसा ही काम करता है. सबसे दिलचस्प बात है कि यह पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है.
हेगेट ने लगाया गणित
हेगेट ने इसमें थोड़ा गणित भी लगाया है. उनके मुताबिक हर साल एक शख्स इतना सीवेज पैदा कर देता है, जिससे 4-5 लीटर बायो जेट फ्यूल का उत्पादन किया जा सकता है. अगर लंदन से न्यूयॉर्क की फ्लाइट की बात करें तो सालाना 10 हजार लोगों के सीवेज की जरूरत पड़ेगी. जबकि 10 हजार की वापस आने के लिए. यानी ब्रिटेन की कुल सीवेज आपूर्ति देश की कुल विमान ईंधन मांग का लगभग 5% हिस्सा पूरा करेगी.