Viral: कच्छ का रण पहले राजस्थान के कच्छ जिले का बड़ा हिस्सा हुआ करता था, अब गुजरात में है. यह भारत के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है. यहां कई तरह के पेड़-पौधे और जानवर पाए जाते हैं. कच्छ अपने ऊंटों के लिए भी बहुत मशहूर है. वहां दो तरह के ऊंट होते हैं - 'खारी' और 'कच्छी'. खारी ऊंट अपनी तैरने की काबिलियत के लिए जाना जाता है. ये रेगिस्तान में नहीं बल्कि अपना खाना लेने के लिए पानी में भी तैर सकता है. इस नस्ल को नेशनल लेवल पर भी पहचान मिली है. खारी ऊंट कच्छ के समुद्र के किनारे के गांवों में मिलते हैं. इन ऊंटों के वहां रहने का मुख्य कारण वहां मिलने वाला खाना है. उनका मुख्य भोजन समुद्र के किनारे मिलने वाला 'चेर' नामक पौधा होता है.


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भारत में ही मौजूद हैं खारी ऊंट


"खारी" ऊंट आमतौर पर समुद्र के तट पर उगने वाले पेड़-पौधों (मैंग्रोव) को खाते हैं. ये पानी में करीब डेढ़ से दो किलोमीटर तक तैर सकते हैं. भोजन के लिए वे "चेरिया" (एक खास तरह के पौधे) के जंगलों में जाते हैं. कच्छ में खारी ऊंटों को भचौ तालुका के चिरई से लेकर वोंध, जंगी, अंबलियारा और सूरजबाड़ी तक खाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है. रबारी और जाट समुदाय के लोग पशुपालन के रूप में इनका ख्याल रखते हैं. 2012 में कच्छ में करीब 4,000 खारी ऊंट हुआ करते थे, लेकिन अब उनकी संख्या बहुत कम हो गई है, सिर्फ 2,000 रह गए हैं.


चेर नाम के पौधों की कटाई है वजह


सहजीवन संस्था के रामेशभाई भट्टी बताते हैं कि इसका मुख्य कारण "चेर" नाम के पौधे की कटाई है, जो इन ऊंटों का मुख्य भोजन है. भोजन ना मिलने की वजह से कई खारी ऊंट भूख से मर रहे हैं. इस नस्ल को बचाने के लिए सहजीवन संस्था और कच्छ ऊंट प्रजनक संघ मिलकर कई सालों से इनके पालन-पोषण और संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. संगठन ने हाल ही में सुरक्षा कारणों से समुद्र तट पर इन ऊंटों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध पर चिंता जताई है. भोजन की तलाश में पहले ये खारी ऊंट स्वतंत्र रूप से समुद्र तट पर घूमते थे. खारी ऊंट का दूध भी बहुत गुणकारी माना जाता है. इससे आइसक्रीम, चॉकलेट और अन्य उत्पाद भी बनाए जाते हैं.