मुंबई मेट्रो में पैसेंजर्स खेलने लगे `अंताक्षरी`, Video देखकर यूजर्स बोले- Delhi Metro में इतने में लड़कियां थप्पड़ चला दे
Mumbai Metro Passengers: मेट्रो की सवारी अक्सर सुस्त और उबाऊ हो सकती है. लोग अपने फोन में सिर छिपाकर या किताब पढ़कर खुद का मनोरंजन करने की कोशिश करते हैं.
Mumbai Metro Passengers: शहरों में मेट्रो परिवहन के सबसे लोकप्रिय साधनों में से एक है. यह पब्लिक प्लेस इस बात की याद दिलाता है कि भले ही हर व्यक्ति दूसरे से अलग है लेकिन हम सभी रोजमर्रा की जिंदगी की उन्हीं सांसारिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं. या तो सुबह नींद में अपने-अपने गंतव्य की ओर जाते समय या काम के एक लंबे और थकाऊ दिन से घर वापस आते समय, मेट्रो की सवारी अक्सर सुस्त और उबाऊ हो सकती है. लोग अपने फोन में सिर छिपाकर या किताब पढ़कर खुद का मनोरंजन करने की कोशिश करते हैं. एक दिलचस्प बदलाव के लिए मुंबई मेट्रो के यात्रियों को अंताक्षरी सेशन में एक-दूसरे के साथ बातचीत करते देखा गया. महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया.
एक कैंपेन के तहत किया जा रहा ऐसा एंटरटेनमेंट
जैसा कि ब्रूट इंडिया द्वारा बताया गया है कि यह व्हाई लोइटर अभियान (Why Loiter Campaign) के नेतृत्व वाली पहल के तहत हो पाया. यह एक महिला अधिकार अभियान है, जो 2014 में मुंबई में महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों को फिर से हासिल करने के लिए शुरू किया गया था.
मेट्रो में कई महिलाएं आई एकसाथ और गाने लगी गाना
व्हाई लोइटर अभियान के अनुसार, मुंबई मेट्रो में महिलाएं इस अभियान में तुरंत शामिल हो गईं और गाना शुरू कर दिया, जबकि पुरुषों को भाग लेने के लिए बहुत अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता थी. कुछ अन्य महिलाओं ने कहा, 'हम घाटकोपर जल्द पहुंच गए. आज ऐसा लगा मानो सिर्फ पांच मिनट.' कुछ अन्य महिलाओं ने कहा, 'हम लोगों ने जिंदा महसूस किया, जबकि हमने सिर्फ कुछ मिनट ही बिताए.' मेट्रो में चढ़ते ही एक लॉ की छात्रा गाना गाने वाली टीम में शामिल हो गई. वह घाटकोपर में रहती थी, लेकिन यह जानकर कि वे वर्सोवा के लिए पीछे से गाएंगे, वह उनके साथ वापस सवारी में शामिल हो गई.
महिलाओं को लगा कहीं कुछ लोग ऐसा करने से मना न कर दें
महिलाओं ने दावा किया कि उन्हें डर है कि उनके गाना गाने से लोग परेशान हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि कहीं वो यह न कह दें कि शोर मचाना बंद करो! मैं अपना फोन कॉल नहीं सुन सकता. लेकिन शुक्र है कि ऐसा कभी नहीं हुआ.
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