Tibetan Sovereignty Debate: तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने शनिवार को कहा कि चीन उनके साथ बातचीत करना चाहता है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि तिब्बत आजादी नहीं मांग रहा है. उन्होंने यह टिप्पणी अपना 88वां जन्मदिन मनाने के दो दिन बाद की. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में पत्रकारों से बात करते हुए दलाई लामा ने कहा कि चीन को तिब्बती लोगों की मजबूत भावना का एहसास है और वह हमेशा चीनी सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं.


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तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा, ‘मैं हमेशा बातचीत के लिए तैयार हूं. अब चीन को भी एहसास हो गया है कि तिब्बती लोगों की भावना बहुत मजबूत है. इसलिए, तिब्बती समस्याओं से निपटने के लिए वे मुझसे संपर्क करना चाहते हैं. मैं भी तैयार हूं. हम आजादी नहीं मांग रहे हैं.’


दलाई लामा ने, ‘हमने कई वर्षों से  निर्णय लिया है कि हम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा बने रहेंगे...अब चीन बदल रहा है. चीनी, आधिकारिक या अनौपचारिक रूप से, मुझसे संपर्क करना चाहते हैं.’


दलाई लामा तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता हैं.  6 जून, 1935 को ल्हामो थोंडुप को दो साल बाद दलाई लामा के 14वें अवतार के रूप में पहचाना गया और उन्हें तिब्बत की राजधानी ल्हासा के पवित्र शहर में ले जाया गया.


1959 तिब्बत से भागकर भारत आ गए थे दलाई लामा
अक्टूबर 1950 में, हजारों चीनी सैनिकों ने तिब्बत में मार्च किया और इसे चीन का हिस्सा घोषित कर दिया. अगले कुछ वर्षों में, बीजिंग ने तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली लेकिन उसके शासन के प्रति प्रतिरोध फैलने लगा. जैसे-जैसे स्थिति तेजी से अस्थिर होती गई, दलाई लामा 1959 में अपनी जन्म भूमि से भागकर पड़ोसी भारत में चले गए.


तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें राजनीतिक शरण दी और वह तब से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मैक्लोडगंज क्षेत्र में रह रहे हैं. निर्वासित तिब्बती सरकार का मुख्यालय यहीं है.


चीन लगाता आया है दलाई लामा पर यह आरोप
चीन ने अतीत में दलाई लामा पर ‘अलगाववादी’ गतिविधियों में शामिल होने और तिब्बत को विभाजित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है और उन्हें एक विभाजनकारी व्यक्ति मानता आया है. हालांकि, तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने जोर देकर कहा है कि वह स्वतंत्रता नहीं बल्कि सभी तिब्बतियों के लिए ‘वास्तविक स्वायत्तता’ की मांग कर रहे हैं.