भारत की ऐसी ट्रेन जिसमें भारतीय नहीं कर सकते थे सफर, अब टिकटों की मारामारी

Indian Railway Facts: 1 जून, 1930 में अंग्रेजों ने इस लग्जरी ट्रेन की शुरुआत की थी. डेक्कन क्वीन भारत की पहली सुपरफास्ट ट्रेन है. कहा यह भी जाता है कि डेक्कन क्वीन भारत की पहली लग्जरी ट्रेन थी. इस ट्रेन में पहले भारतीयों को सफर की इजाजत नहीं थी.

बवीता झा Wed, 31 Jul 2024-1:03 pm,
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डेक्कन क्वीन ट्रेन

Deccan Queen Train:ट्रेन का सफर आपने कभी न कभी किया होगा. कभी नदी, कभी पहाड़, कभी जंगलों तो कभी बस्तियों से गुजरती ट्रेन. इस सफर का अलग ही अनुभव होता है. ऐसी ही एक ट्रेन हैं, जिसकी तारीफ करने से उद्योगपति आनंद महिंद्रा (Anand Mahindra) भी खुद को रोक नहीं पाए . 

 

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नहीं देखी होगी ऐसी ट्रेन

डेक्कन क्वीन (Deccan Queen Train) में सफर का अपना ही मजा है.  ट्रेन की छत कांच से बनी है. सफर के दौरान आपको अहसास होगा कि आप खुले आसमान के नीचे बैठे हैं. कोच में घूमने वाली कुर्सियां लगी है, जो सफर बेहतरीन बना देती है.  डेक्कन क्वीन या दक्कन की रानी मुंबई से पुणे के बीच चलती है. मुंबई से पुणे पहुंचने में इस ट्रेन को तीन घंटे का वक्त लगता है. कांच की छत, अनोखी खिड़कियां और मूव करने वाली कुर्सियां इस ट्रेन के सफर को बेहतरीन बना देती है.  

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94 साल पहले हुई थी शुरुआत

1 जून, 1930 में अंग्रेजों ने इस लग्जरी ट्रेन की शुरुआत की थी. डेक्कन क्वीन भारत की पहली सुपरफास्ट ट्रेन है. कहा यह भी जाता है कि डेक्कन क्वीन भारत की पहली लग्जरी ट्रेन थी.  शुरुआत में इसमें दो रैक लगाए गए थे. कोच के अंदर मौजूद फ्रेम्स को इंग्लैंड में बनाया गया था, जबकि रेल की बॉडी मुंबई स्थित वर्कशॉप में बनाया गया.   

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इलेक्ट्रिक इंजन वाली पहली ट्रेन

डेक्कन क्वीन का इतिहास इतना ही नहीं है. उसके नाम पर कई रिकॉर्ड है. यह देश की पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसे चलाने के लिए इलेक्ट्रिक इंजन लगाया गया था. इतना ही नहीं यात्रियों के बीच बढ़ती डिमांड को देखते हुए पहली बार किसी ट्रेन में फर्स्ट और सेकंड क्लास में चेयर कारों की शुरुआत हुई थी.   

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अंग्रेजों के अफसरों के लिए बनी थी खास ट्रेन

ब्रिटिश सरकार ने अंग्रेज सरकार के अफसरों के लिए इस ट्रेन की शुरुआत की थी. इसलिए इस ट्रेन में तमाम लग्जरी सुविधाएं थी. हॉर्स रेसिंग के लिए जाने वाले अंग्रेज अफसर इस ट्रेन से सफर करते थे.  

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भारतीयों को सफर की इजाजत नहीं

शुरुआती दिनों में इसे हफ्ते में एक ही दिन चलाया जाता था. इसमें सिर्फ अंग्रेजी सरकार के अधिकारियों और व्यवसायियों को ही सफर करने की इजाजत थी. भारतीय इस ट्रेन से सफर नहीं कर सकते थे. लेकिन जब धीरे-धीरे यात्रियों की संख्या घटने लगी, तो रेलवे को मुनाफा दिलाने के मकसद से साल 1943 में भारतीयों को भी सफर करने की इजाजत दी गई. भारतीय नागरिकों को सफर की इजाजत देने के बाद हफ्ते में एक दिन चलने वाली इस ट्रेन तो दैनिक ट्रेन में भी तब्दील कर दिया गया.  बाद में पहली बार इसी ट्रेन में महिलाओं के लिए अलग कोच भी लगाया गया था. 

 

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