Nameplates Row: किसी को फर्क नहीं पड़ता लेकिन किसी को दुकानदारी खत्म होने की घबराहट, नेम प्लेट विवाद का कांवड़ यात्रा रूट पर कितना असर
Kanwar yatra 2024: सावन के पवित्र महीने में शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा से पहले यूपी सरकार के उस फरमान पर सियासी संग्राम छिड़ा है, जिसमें कांवड़ यात्रा रूट पर व्यापार चलाने वाले दुकानदारों, ढाबा मालिकों से उनका नाम बोर्ड पर लिखने को कहा है. संभल में सीएम योगी के आदेश लागू होने के बाद मुस्लिम दुकानदारों ने दुकान और फलों के ठेलों पर नेम प्लेट लगाते हुए इस पहला का स्वागत किया है. कांवड़ यात्रा के मद्देनजर आए इस आदेश पर कई मुस्लिम दुकानदारों को कोई एतराज नहीं है. उनका ये भी कहना है कि दुकान हिंदू की है, मुस्लिम की है या सिख और इसाई की, कांवरिया हो या कोई सामान्य ग्राहक, बेचने वाला कौन है ये जानना उनका अधिकार है. कुल मिलाकर बहुत से दुकानदारों को लगता है कि आदेश से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अपनी दुकानदारी कम होने यानी बिजनेस में नुकसान होने का डर सता रहा है. मुजफ्फरनगर (muzaffarnagar), शामली, बागपत और मेरठ के साथ कांवड़ यात्रा के पूरे रूट (Kanwar Yatra Route name plate row) पर कैसी हैं हालात? आइए जानते हैं.
दुकानदारी घटने का डर तो है...
यूपी सरकार का वो आदेश जो कांवड़ यात्रा रूट पर दुकानदारों, खासकर खाने-पीने का सामान बेचने वालों (भोजनालय/ ढाबा मालिकों) को उनका नाम प्रदर्शित करने के लिए बाध्य करता है, उसे लेकर यूपी के मुजफ्फरनगर लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार तक पूरे कांवड़ यात्रा रूट में दुकानदारों की मिली जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली. कुछ दुकानदारों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, वहीं कुछ लोगों को अपनी सेल कम होने का डर सता रहा है.
सबसे बड़ी बहस
मुजफ्फरनगर की व्यस्त सड़कों से लेकर हरिद्वार तक आपको हजारों ऐसे फूड वेंडर्स, दुकानें और ढाबे मिल जाएंगे जहां चौबीसों घंटे योगी सरकार के उस आदेश की चर्चा हो रही है जिसमें उन्हें अपनी पहचान यानी नाम बताने को कहा गया है.
नेम प्लेट विवाद क्यों?
कुछ दुकानदारों से जब योगी सरकार के नेम प्लेट वाले फैसले पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा- 'जब हम रमजान और ईद मनाते हैं तो हम खरीददारी करते समय कभी ये नहीं सोचते कि दुकानदार हिंदू है या मुसलमान. अब हमसे हमारी पहचान उजागर करने के लिए क्यों कहा जा रहा है? हो सकता है कि कई ग्राहक मेरी दुकान का नाम देखकर दूर हो जाएं.'
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कहीं खुशी-कहीं गम
मुजफ्फरनगर, मेरठ और आगरा की बात करें तो फिलहाल इन जिलों पर आदेश का सबसे ज्यादा असर दिख रहा है. तीनों जगह व्यापारियों की मिली जुली प्रतिक्रिया आ रही है. कोई खुश है तो कोई नेम प्लेट लगाने के आदेश से नाराज है.
आस्था का सवाल
एक अनुमान के मुताबिक करीब पांच करोड़ लोग कांवड़ यात्रा में जाते हैं, जिनमें से लगभग 2.5 करोड़ लोग यूपी से होकर गुजरते हैं. ऐसे में मुजफ्फरनगर से लेकर हरिद्वार के पूरे कांवड़ यात्रा रूट पर बहस का यही मुद्दा छाया हुआ है.
नाम बदलकर व्यापार करना क्या धोखा नहीं है?
रिपोर्ट्स के हवासे से एक केस स्टडी की बात करें तो टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक शामली-पानीपत रोड पर एक ढाबा है. जिसके मालिक हैं रिजवान चौधरी. रिजवान का कहना है कि भले वो मुस्लिम हैं लेकिन शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसते हैं. वो अपने यहां बनने वाले खाने में प्याज और लहसुन नहीं डलवाते फिर भी उन्हें ढाबा बंद करने के लिए कहा गया, जबकि वो अपने प्रतिष्ठान के बाहर बोर्ड पर अपना नाम लिखने के लिए तैयार थे. उनका कहना है कि अगर प्रशासन ने उनकी बात नहीं मानी तो उनका बड़ा नुकसान हो जाएगा.
पूरे प्रदेश में आदेश लागू
आपको बताते चलें कि मुजफ्फरनगर में पिछले हफ्ते जारी एक सरकारी आदेश में कहा गया था कि भोजन बेचने वाले सभी प्रतिष्ठान अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करेंगे. हालांकि इस फरमान ने सियासी भूचाल मचा दिया. आईजी (सहारनपुर रेंज) अजय साहनी ने इस आदेश को शामली से लेकर सहारनपुर जिले तक बढ़ा दिया. शुक्रवार को यूपी सरकार ने इस आदेश का और विस्तार करते हुए इस आदेश को पूरे कांवड़ मार्ग पर लागू कर दिया, जिससे कई जिले प्रभावित हुए.
सवाल हिंदुओं की आस्था का है....
मुजफ्फरनगर शहर के बीजेपी MLA और राज्य के कैबिनेट मंत्री कपिल देव अग्रवाल, जिन्होंने हाल ही में कहा था कि मुसलमानों को अपनी दुकानों का नाम हिंदू देवताओं के नाम पर नहीं रखना चाहिए, उनका कहना है कि इस आदेश में कुछ भी गलत नहीं है. कुछ प्रतिष्ठान हिंदू नामों का उपयोग करते हैं जबकि उनके मालिक मुस्लिम हैं. हमें इससे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन असली समस्या तब पैदा होती है जब वे मांसाहारी व्यंजन बेचते हैं. इससे करोड़ों लोगों की भावनाओं और आस्था पर असर पड़ सकता है.
कानून व्यवस्था के लिए फैसला जरूरी है: BJP
सीएम योगी के आदेशों का असर दिख रहा है. पूरे मुजफ्फरनगर में कावड़ मार्ग पर दुकानदारों ने अपने नाम लिखे हैं. खाने-पीने की दुकानों पर ये नाम लिखे गए हैं. बड़े-बड़े पोस्ट में लिखे गए हैं दुकानों पर नाम. मुजफ्फरनगर से गुजरते हैं करोड़ों शिवभक्त. मुजफ्फरनगर में कावड़ मार्ग काफी लंबा है. जिले में दुकानों और कैंटिनों पर भी नाम दिखने शुरू हो गए हैं. यूपी सरकार के इस फैसले के बचाव में बीजेपी के नेता एक सुर में इसे कांवड़ यात्रा की शुचिता बनाए रखने, कांवड़ यात्रा के दौरान लहसुन-प्याज न खाने जैसे नियमों का सही तरह से पालन कराने और पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था को बरकरार रखने के लिहाज से इस फैसले को सही बता रहे हैं.
मालिक मुस्लिम नाम हिंदू ऐसा क्यों?
बिजनोर के श्री खाटू श्याम टूरिस्ट ढाबा के मालिक मोहम्मद इरशाद है. उनका कहना है कि ये बड़ी विडंबना है कि इस आदेश से दोनों समुदायों को नुकसान होगा. मेरा प्रतिष्ठान उस सड़क पर है जहां कांवरियों का आना-जाना लगा रहता है. हम शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसते हैं. मेरे कर्मचारी हिंदू हैं. अगर ग्राहक हैं तो मेरा नाम देखें, ग्राहकों की संख्या कम हो जाएगी और हमें नुकसान उठाना पड़ेगा. भले ही हमारी आस्था कुछ भी हो, व्यवसाय को सांप्रदायिक राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिए.
जागो ग्राहक जागो - फैसले का समाजवादी पार्टी-कांग्रेस से कनेक्शन?
Zee News की पड़ताल में कांवड़ यात्रा के मद्देनजर आए आदेश का संभल के मुस्लिम दुकानदारों ने स्वागत किया है. वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि UP में नेमप्लेट (Name plate row) वाला आदेश 2006 में तब लागू हुआ था. तब केंद्र में UPA सरकार थी. वहीं UP के CM मुलायम सिंह यादव हुआ करते थे. UP सरकार के 2006 के बिल में दुकानों के बाहर तख्ती पर सभी दुकानदारों, रेस्टोरेंट, ढाबा संचालकों को अपना नाम, पता और लाइसेंस नंबर लिखने की बात कही थी. उसी दौरान ग्राहकों की बेहतरी के लिए सामानों की लिस्ट भी सार्वजनिक करने की बात कही गई थी. खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के मुताबिक प्रत्येक रेस्तरां या ढाबा संचालक को अपनी फर्म का नाम, अपना नाम और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य किया गया. वहीं 'जागो ग्राहक जागो' के अंतर्गत सूचना बोर्ड पर रेट लिस्ट लगाना भी अनिवार्य था.