Explainer: पृथ्वी का एक चंद्रमा तो शनि के 145 से भी ज्यादा, सौरमंडल में यह भेदभाव क्यों है?

Moons In Solar System: प्राकृतिक रूप से बने पिंड जो ग्रहों की परिक्रमा करते हैं, उन्हें चंद्रमा कहा जाता है. दूसरे शब्दों में, वे उस ग्रह के प्राकृतिक उपग्रह होते हैं. हमारे सौरमंडल का सबसे मशहूर उपग्रह है पृथ्‍वी का चंद्रमा. लेकिन हमारी धरती का सिर्फ एक ही चांद क्यों है? जबकि पड़ोसी मंगल (Mars) के दो-दो प्राकृतिक उपग्रह या चंद्रमा हैं. उपग्रहों के मामले में सौरमंडल का दादा है शनि ग्रह. शनि के 50-100 नहीं, 146 चंद्रमा हैं. उपग्रहों के मामले में सौरमंडल के ग्रहों में यह भेदभाव क्यों है?

दीपक वर्मा Jul 01, 2024, 09:51 AM IST
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हमारे सौरमंडल में कुल कितने चंद्रमा हैं?

NASA/JPL सोलर सिस्टम डायनेमिक्स टीम के अनुसार, हमारे सौरमंडल में ग्रहों की परिक्रमा करने वाले चंद्रमाओं की वर्तमान संख्या 293 है. पृथ्वी का एक चंद्रमा, मंगल के दो, बृहस्पति (Jupiter) के 95, शनि (Saturn) के 146, यूरेनस के 28, नेपच्यून के 16, तथा बौने ग्रह प्लूटो के पांच चंद्रमा हैं. बुध और शुक्र का कोई प्राकृतिक उपग्रह नहीं है. (Photo : NASA)

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कैसे कोई पिंड बन जाता है उपग्रह?

सौरमंडल के आठ ग्रहों में से छह के उपग्रह हैं. कुछ ग्रहों के उपग्रह क्यों होते हैं, इसे लेकर विज्ञान दो तरह की संभावनाएं रखता है. पहला या तो वे उपग्रह सौरमंडल के साथ ही बने, दूसरा उपग्रह गुरुत्वाकर्षण के जरिए ग्रहों की पकड़ में आ गए क्योंकि वे उनकी 'हिल स्फीयर रेडियस' में आ गए थे. (Photo : ESA)

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हिल स्फीयर रेडियस क्या है?

ब्रह्मांड की हर चीज अपने आसपास की चीजों पर आकर्षण बल लगाती है जिसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं. वस्तु जितनी बड़ी होगी, उसका गुरुत्वाकर्षण भी उतना ही अधिक होगा. इसी गुरुत्वाकर्षण की वजह से हमें जमीन से जुड़े रहते हैं, हवा में उतराते नहीं. हमारे सौरमंडल में सबसे अधिक गुरुत्वाकर्षण वाली वस्तु सूर्य है. सूर्य का गुरुत्वाकर्षण सभी ग्रहों को उनकी कक्षा में रखता है.

किसी उपग्रह के ग्रह की कक्षा में परिक्रमा करने के लिए जरूरी है कि वह उसके इतना करीब हो कि कक्षा में बने रहने के लिए पर्याप्त बल लगा सके. किसी ग्रह के लिए उपग्रह को कक्षा में रखने के लिए जो न्यूनतम दूरी होती है, उसे 'हिल स्फीयर रेडियस' रहते हैं.

'हिल स्फीयर रेडियस' बड़े और छोटे, दोनों पिंडों के द्रव्यमान पर आधारित होती है. इसे पृथ्वी और चंद्रमा के उदाहरण से समझिए. पृथ्वी, सूर्य के चक्कर लगाती है लेकिन चंद्रमा सूर्य की तुलना में पृथ्वी के कहीं ज्यादा करीब है इसलिए धरती का गुरुत्वाकर्षण उसे पकड़े हुए हैं. चंद्रमा पर सूर्य की तुलना में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव ज्यादा है क्योंकि यह उसके 'हिल स्फीयर रेडियस' के भीतर है.

बुध जैसे छोटे ग्रहों की 'हिल स्फीयर रेडियस' बेहद छोटी होती है क्योंकि वे बहुत ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल नहीं लगा सकते. उनका कोई उपग्रह आए भी तो सूर्य उसे अपनी ओर खींच लेगा. मंगल के दो उपग्रह हैं लेकिन वैज्ञानिकों को यह पक्के तौर पर नहीं मालूम कि क्या वे एस्टेरॉयड्स थे जो ग्रह की 'हिल स्फीयर रेडियस' के पास से गुजरे और पकड़े गए. या फिर उनका निर्माण सौरमंडल के साथ ही हुआ था.

बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून का 'हिल स्फीयर रेडियस' बहुत बड़ा है क्योंकि उनका द्रव्यमान पृथ्वी से कहीं ज्यादा है और वे सूर्य से काफी दूरी पर हैं. वे अपने गुरुत्वाकर्षण से कहीं ज्यादा प्राकृतिक उपग्रहों को कक्षा में खींच और रख सकते हैं. यही वजह है कि बृहस्पति के 95 उपग्रह हैं तो शनि के 146 उपग्रह. (Photo : NASA)

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सौरमंडल के साथ बने उपग्रह?

दूसरी थ्‍योरी कहती है कि कुछ उपग्रह सौरमंडल के साथ ही ग्रहों से जुड़ गए थे. सौरमंडलों की शुरुआत गैस की बड़ी डिस्क के सूर्य जैसे तारों के चारों तरफ घूमते हुए होती है. जैसे-जैसे गैस सूर्य की परिक्रमा करती है, यह ग्रहों और चंद्रमाओं में संघनित होती जाती है. ग्रह और उपग्रह एक ही दिशा में घूमते हैं. लेकिन हमारे सौरमंडल में कुछ ही उपग्रह शायद इस तरह से बने होंगे.

वैज्ञानिकों को लगता है कि बृहस्पति और शनि के शुरुआती उपग्रह सौरमंडल के साथ ही बने क्योंकि वे बहुत ज्यादा पुराने हैं. हमारे सौरमंडल के बाकी उपग्रह जिनमें इन दोनों ग्रहों के बाहरी उपग्रह भी शामिल हैं, शायद गुरुत्वाकर्षण की वजह से पकड़े गए. (Photo : NASA)

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क्यों अलग है हमारा चांद?

पृथ्‍वी का चंद्रमा खास है क्योंकि यह अलग तरीके से बना. वैज्ञानिक मानते हैं कि बहुत समय पहले, मंगल के आकार का एस्टेरॉयड धरती से टकराया. उस टक्कर से धरती का एक बड़ा हिस्सा अलग हुआ और कक्षा में पहुंच गया, वही हिस्सा चंद्रमा बना. वैज्ञानिकों को ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि उन्हें चंद्रमा की सतह पर बेसाल्ट मिला है. चंद्रमा का बेसाल्ट ठीक वैसा ही है जैसा पृथ्वी के भीतर मिलता है. (Photo : NASA)

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