भारत को मिलेगा अमेरिका का किलर ड्रोन! मिनटों में राख हो जाएगा दुश्मन, चीन के पास भी नहीं कोई तोड़

Defence Deal: एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन बहुत दूर से ही निशाना लगाने में सक्षम हैं. ये इतने ताकतवर हैं कि इनसे 1850 किलोमीटर दूर तक के दुश्मनों को निशाना बनाया जा सकता है. भारत के पास ये ड्रोन होने से पाकिस्तान के भी कई शहरों पर नज़र रखी जा सकेगी.

गौरव पांडेय Sun, 22 Sep 2024-5:17 pm,
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MQ 9B Killer Drone: भारत अपनी सीमाओं की चौकसी के लिए कोई भी कोताही नहीं बरत रहा है. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात में अरबों डॉलर की ड्रोन डील पर भी चर्चा की. ये वही MQ-9B किलर ड्रोन है जिसकी डील के बारे में काफी चर्चा है. इससे यह संकेत मिला है कि यह समझौता जल्द ही अंतिम रूप ले सकता है. 

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एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन एक बहुउद्देशीय, लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाला ड्रोन है जो उच्च ऊंचाई पर लगातार निगरानी और हमले की क्षमता रखता है. इसकी लंबी उड़ान अवधि और हथियारों से लैस होने के कारण यह विभिन्न प्रकार के सैन्य अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है. सी-गार्जियन और स्काई गार्जियन इसके दो प्रमुख वेरिएंट हैं. MQ-9B Predator Drones हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस (HALE) की कैटेगरी में आते हैं और 40 घंटे से अधिक समय तक उड़ान भर सकते हैं.

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एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन बहुत दूर से ही निशाना लगाने में सक्षम हैं. ये इतने ताकतवर हैं कि इनसे 1850 किलोमीटर दूर तक के दुश्मनों को निशाना बनाया जा सकता है. भारत के पास ये ड्रोन होने से पाकिस्तान के कई शहरों पर नज़र रखी जा सकेगी. इतना ही नहीं कहा जाता है कि चीन के पास भी इनका कोई तोड़ नहीं है. इन ड्रोन्स में कई तरह की मिसाइलें लगी होती हैं जो जमीन पर मौजूद टैंक, जहाज या किसी भी चीज़ को नष्ट कर सकती हैं.

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इस ड्रोन को अमेरिका की प्रमुख रक्षा उपकरण कंपनी ‘जनरल एटॉमिक्स’ ने बनाया है. इसे ‘हंटर-किलर’ ड्रोन बीच कहा जाता है. रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस डील का मुख्य उद्देश्य चीन से लगी सीमा तथा हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी तंत्र को मजबूत करना है. फिलहाल इस पूरी डील की कुल लागत लगभग 3 अरब डॉलर होने का अनुमान है.

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इस ड्रोन को अमेरिका की प्रमुख रक्षा उपकरण कंपनी ‘जनरल एटॉमिक्स’ ने बनाया है. इसे ‘हंटर-किलर’ ड्रोन बीच कहा जाता है. रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस डील का मुख्य उद्देश्य चीन से लगी सीमा तथा हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी तंत्र को मजबूत करना है. फिलहाल इस पूरी डील की कुल लागत लगभग 3 अरब डॉलर होने का अनुमान है.

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