Movie Woh 3 Din Review: अगर कोई कहे कि एक छोटे से गांव में मेहनत-मजदूरी कर रिक्शा चलाने वाले एक चालक की साधारण सी जिंदगी पर फिल्म बनी है तो आपके जेहन में यह सवाल जरूर आ सकता है कि आखिर गांव में रहने वाले रिक्शा चालक की जिंदगी में ऐसा क्या खास हो सकता है कि इसपर एक फिल्म बनानी पड़ी? उस पर से अगर आपको कोई यह बताए कि रिक्शा चालक की जिंदगी पर बनी फिल्म देखने लायक है तो आप यकीनन अचरज में पड़ जाएंगे. जी हां, यह सच है कि संजय मिश्रा के उम्दा अभिनय से सजी फिल्म 'वो 3 दिन' एक बेहतरीन फिल्म है और इसे सिनेमा के बड़े पर्दे पर देखा जा सकता है.


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कसा हुआ संपादन


फ़िल्म 'वो 3 दिन' के उच्चस्तरीय  लेखन, कसे हुए संपादन, बढ़िया निर्देशन और एक से बढ़कर एक परफॉर्मेंस ने एक बार फिर से इस बात को साबित कर दिया है कि का फिल्म का बजट नहीं, बल्कि फिल्म बनाने का नजरिया बड़ा होना चाहिए‌ और तभी एक अच्छी फिल्म बनाई जा सकती है. फिल्म 'वो 3 दिन' ना सिर्फ एक मनोरंजक फिल्म है, बल्कि ये गांव के जीवन की कठिनाइयों और अच्छाइयों को भी बड़े मार्मिक अंदाज में पेश करती है.


कई सवालों का जवाब है फिल्म


रामभरोसे नामक एक रिक्शा चालक की मुलाकात, जब एक ऐसी सवारी से होती है, जो 3 दिनों के लिए उसके रिक्शा को किराये पर लेता है तो सफर के दौरान आखिर क्या कुछ होता है? रास्तों पर ऐसे कौन-से मोड़ आते हैं, जिनके बारे में रिक्शा चालक ने कभी कल्पना भी नहीं की होती है? इन 3 दिनों के दौरान रिक्शा चालक को आखिर ऐसा क्या कुछ देखने को मिलता है कि खुद उसे भी अपनी आंखों पर यकीन नहीं आता है? इन सभी सवालों का बस एक ही बढ़िया जवाब है और वो है फिल्म 'वो 3 दिन' जो इस दौर की एक बेहद महत्वपूर्ण फिल्म है.


संजय मिश्रा ने डाली जान


एक रिक्शा चालक की भूमिका में संजय मिश्रा ने जान डाल दी है. वो अपने साधारण से किरदार को इतना विश्वसनीय और असाधारण बना देते हैं कि आप एक‌ अभिनेता के तौर पर संजय मिश्रा के फिर से मुरीद हुए बिना नहीं रह पाएंगे. कलाकार के तौर पर राजेश शर्मा, चंदन रॉय सान्याल, पूर्वा पराग, पायल मुखर्जी और अमजद कुरैशी ने भी बढ़िया अभिनय किया है. राज आशु ने एक रिक्शा चालक के नजरिए‌ से एक दिलचस्प फिल्म बनाई है, जिसे बड़े पर्दे पर देखा जाना और उसे सराहा जाना चाहिए.


फिल्म में गांव का जीवन


'वो 3 दिन' गांव के जीवन का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसे बेहद मनोरंजक ढंग से पेश किया गया है. फिल्म शुरू से अंत तक आपको बांधे रखती है और किसी भी पल आपको बोरियत का एहसास नहीं होता है. फिल्म देखने के बाद आपको एक बेहतरीन फिल्म देखने‌ का एहसास होगा. यह फ़िल्म आपको महसूस कराएगी कि आखिर गांव और गांव का जीवन कैसा होता है, जो अब धीरे-धीरे हमारे मानस पटल से दूर होता जा रहा है.


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