नई दिल्ली. छठ महापर्व (Chhath Festival 2020) का बृहस्पतिवार यानी 19 नवंबर को दूसरा दिन है. इस दिन को खरना (Kharna) कहा जाता है. कार्तिक मास की पंचमी को नहाय-खाय के अगले दिन खरना मनाया जाता है. कुछ लोग खरना को लोहंडा भी कहते हैं. छठ पर्व में खरना का विशेष महत्व है. इस दिन व्रत रखा जाता है और रात में रसिया (Rasiya) (खीर) का प्रसाद ग्रहण किया जाता है. विस्तार से जानिए खरना के बारे में: 


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चार दिन का त्योहार है छठ पर्व
छठ का पावन पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. इस पर्व में महिलाएं व्रत रखकर सूर्यदेव और छठ मैया की पूजा करती हैं और संतान की प्राप्ति, बच्चों की अच्छी सेहत और दीर्घायु होने की कामना करती है. इस पूजा में पहले दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन शाम को सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करते हैं. वहीं, चौथे दिन सुबह-सुबह सूर्यदेव को अर्घ्य देकर पारण किया जाता है.


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छठ पूजा में खरना का है खास महत्व
खरना पर दिन में व्रत रखा जाता है और रात में पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है. इसके बाद व्रती छठ पूजा के पूर्ण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं. इसके पीछे का मकसद तन और मन को छठ पारण तक शुद्ध रखना होता है.


खरना पर बनती है रसिया (खीर)
खरना के दिन रसिया का विशेष प्रसाद बनाया जाता है. यह प्रसाद खीर और गुड़ से बनाया जाता है. इस प्रसाद को हमेशा मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है और इसमें आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. खरना वाले दिन पूरियां और मिठाइयों का भी भोग लगाया जाता है.


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छठ मैया को भोग लगाने के बाद व्रती इसी को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं.


खरना में प्रसाद ग्रहण करने का नियम
खरना पर प्रसाद ग्रहण करने का भी विशेष नियम है. जब खरना पर व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो घर के सभी लोग बिल्कुल शांत रहते हैं. चूंकि मान्यता के अनुसार, शोर होने के बाद व्रती खाना खाना बंद कर देता है. साथ ही व्रती प्रसाद ग्रहण करता है तो उसके बादी ही परिवार के अन्य लोग भोजन ग्रहण करते हैं.


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