Akhurath Sankashti Chaturthi: दुखों के निवारण के लिए रावण ने भी रखा था अखुरथ संकष्टी व्रत, जानें क्या है कथा
Sankashti Chaturthi Vrat Katha: हिंदू पांचाग के अनुसार अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 30 दिसंबर को रखा जाएगा. इस दिन भगवान गणेश के पूजन से भक्तों के सभी दुख-कष्ट दूर हो जाते हैं.
Sankashti Chaturthi Upay: सनातन धर्म में हर तिथि का विशेष महत्व बताया जाता है. हर माह के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि गणेश जी को समर्पित है. इस दिन गणेश जी के निमित्त व्रत रखा जाता है और उनकी पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने का विधान है.
सनातन धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना गया है. इसलिए किसी भी कार्य की शुरुआत करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है, ताकि उस कार्य में सफलता मिल सके. बता दें कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन व्रत रखने से जातकों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और हर कार्य में सफलता हासिल करें. बता दें कि इस बार अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत 30 दिसंबर को रखा जाएगा. इस दिन व्रत के दौरान इस व्रत कथा को अवश्य पढ़ें-सुने.
अखुरथ चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने एक बार स्वर्ग में सभी देवाओं को जीत लिया था. संध्या करते हुए उसने बालि को पीछे से पकड़ लिया. लेकिन वानरराज रावण से ज्यादा शक्तिशाली थे और उन्होंने रावण को बगल में दबा लिया. रावण को अपने साथ किष्किंधा ले गए. वहां ले जाकर रावण को उन्होंने अपने पुत्र अंगद को खिलोने की तरह खेलने के लिए दे दिया. अंगद रावण को खिलोना समझ कर खलने लगा. उन्होंने रावण को रस्सी से बांधा और इधर-अधर घुमाने लगा. रावण को इससे भयंकर पीड़ा हो रही थी.
इन सब से परेशान होकर एक दिन रावन ने अपने पिता ऋषि पुलस्त्य को याद किया. रावण की ऐसी हालत देखकर वे बहुत दुखी हुए. रावण की ऐसी हालत देखकर उन्होंने पता लगाया कि आखिर रावण का ये हाल क्यों हुआ. पिता ऋषि पुलस्त्य ने मन ही मन सोचा कि घमंड होने पर देव, मनुष्य और असुर सभी का यही हाल होता है. लेकिन पुत्र के मोह में आकर उन्होंने रावण से पूछ ही लिया कि तुमने मुझे क्यों याद किया. तब पिता को अपनी दशा बताते हैं रावण ने बताया कि मैं बहुत दुखी हूं, यहां नगरवासी मुझे धिक्कारते हैं, आप ही मुझे इस दुख से बाहर आने का रास्ता दिखाएं.
रावण की दुखभरी कथा सुनकर पिता ने बतया कि तुम परेशान न हो, बहुत जल्द इस बंधन से मुक्ति मिल जाएगी. ऐसे में उन्होंने भगवान गणेश का व्रत रखने की सलाह दी. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि पूर्वकाल में वृत्रासुर की हत्या से मुक्ति पाने के लिए इंद्रदेव ने भी यही व्रत रखा था. अखुरथ संकष्टी चतुर्थी का व्रत बहुत फलदायी है और इसे करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं. पिता की बात सुनकर रावण ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने का निश्चय किया. और बालि के बंधन से मुक्त होकर अपना राज्य को चला गया.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)