Puja Vidhi: प्रभु की आराधना अर्थात उनका पूजन करना तो अच्छा ही है, ऐसा करने से व्यक्ति धार्मिकता और सात्विकता की ओर बढ़ता है साथ ही बुरे कर्मों से दूर भी होता जाता है. लेकिन पूजन की पूर्णता तो तभी होती है जब आप सबसे अंत में आरती भी कर लें. आरती करने का भी अपना तरीका है और सही तरीके से आरती करने से जहां अच्छा फल प्राप्त होता है वहीं पूजन के दौरान किसी भी तरह की कमी अथवा भूल चूक भी माफ कराती है. धर्म ग्रंथों में आरती के वर्णन में संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है कि मंत्र रहित एवं क्रिया रहित अर्थात आवश्यक विधि विधान के बिना ही पूजन करने के बाद आरती करने लेने से उसमें पूर्णता आ जाती है. 


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आरती करने के सामान्य नियम (Aarti ke niyam)
1. एक, पांच, सात अथवा विषम संख्या की बाती वाले दीपक को जलाकर आरती करना चाहिए. साधारणतया एक या पांच बत्ती से आरती की जाती है. 
2. आरती में अपने इष्ट आराध्य के गुण कीर्तन के साथ ही उनके मंत्र भी शामिल किए जाते हैं. 
3. आरती का उच्चारण करते हुए भक्त मंत्र के शब्दों की आकृति बनाते हुए आरती घुमाता है किंतु यदि मंत्र बड़ा और कठिन होता है तो ऐसा कर पाना संभव नहीं होता है. 
4. इस समस्या का समाधान बताते हुए हमारे ऋषियों ने ओम् की आकृति बनाने की बात कही है. ऋषियों का कहना है प्रत्येक मंत्र का प्रारंभ ओम् शब्द से ही होता है. 
5. भक्त को हाथ में ली हुई आरती को इस तरह से घुमाना चाहिए कि ओम की आकृति का निर्माण हो जाए. 
6. इस तरह आरती करने में भगवान के गुणों का कीर्तन करने के साथ ही मंत्र साधना भी हो जाती है जो सोने में सुहागा जैसा है. 
7. दीपक की लौ की दिशा पूर्व की ओर रखने से आयु वृद्धि, पश्चिम की ओर रखने से दुखवृद्धि, दक्षिण की ओर हानि और लौ को उत्तर की ओर रखने से धन लाभ होता है.     


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)