Akshay Navami 2024: अक्षय नवमी की पौराणिक कथा यहां पढ़ें, माता लक्ष्मी से जुड़ी ये कहानी जरूर जान लें
Akshay Navami 2024: अक्षय नवमी की पौराणिक कथा माता लक्ष्मी, भगवान श्रीहरि और देवाधिदेव महादेव से जुड़ी हुई है. ऐसे में पाठकों को यह कथा जरूर पढ़नी चाहिए जिससे कि वह पौराणिक मान्यताओं को समझ सकें.
Akshay Navami 2024: अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा एक साथ होती है. जी हां बिल्कुल सही पढ़ा आपने. इस दिन एक साथ और एक बार में दोनों भगवान की पूजा होती है. चलिए बताते हैं आपको इसकी पौराणिक कथा. दरअसल हुआ ये कि एक दिन माता लक्ष्मी मृत्युलोक में भ्रमण कर रही थीं. इसी दौरान उनके मन में एक विचार आया.
माता लक्ष्मी के मन में उलझन
माता लक्ष्मी के मन में जो विचार आया. उन्हें सूझा कि क्यों न भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा एक साथ की जाए. विचार था तो बिल्कुल अगल. लेकिन इस नए विचार को कैसे मूर्त रूप दिया जाए इसे लेकर उनके मन में उलझन बनी हुई थी. जब काफी सोच विचार करने के बाद भी उन्हें कुछ समझ नहीं आया.
माता लक्ष्मी को दिखा आंवले का पेड़
पौराणिक कथाओं के मुताबिक विचारों के उधेड़बुन में वह खोई हुई हीं थी कि इसी दौरान उन्हें आंवले का पेड़ दिख गया. आंवले का पेड़ देखते ही माता की आंखों में चमक आ गई. उन्हें ध्यान आया कि आंवले का वृक्ष ही जिसमें तुलसी और बेल की गुणवत्ता दोनों पाई जाती है. ऐसे में अगर इसकी पूजा करती हूं तो दोनों का पूजा मान लिया जाएगा. ऐसा इसलिए कि तुलसी के पत्ते भगवान विष्णु को प्यारा है जबकि बेलपत्र भगवान शिव को बहुत ही भाता है.
आंवला शिव और विष्णु दोनों का प्रतीक
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक तब लक्ष्मी जी ने आंवले के पेड़ को यही सोचकर पूजा किया कि इसमें विष्णु और शिव दोनों का प्रतीक है. जैसे ही माता लक्ष्मी की पूजा संपन्न हुई तुरंत दोनों भगवना यानि कि शिव और विष्णु प्रकट हुए. जिसके बाद माता ने दोनों के लिए उसी पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया और भगवान श्रीहरि और देवाधिदेव महादेव को प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करवाया.
माता ने भगवान विष्णु और शिव को कराए भोजन
माता के द्वारा करवाए गए भोजन से दोनों भगवान प्रसन्न हुए और आंवले के पेड़ को वरदान देकर वापस अंतर्ध्यान हो गए. उसी दिन के बाद से आंवले के पेड़ की पूजा होने लगी. पौराणिक कथाओं के मुताबिक जिस दिन माता लक्ष्मी ने ऐसा किया था उस दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी. उसी दिन के बाद से यह परंपरा लगातार चलती आ रही है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)