Pitra Dosh Lakshan: भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को एक गंभीर समस्या के रूप में देखा जाता है, जो जीवन में अनेक प्रकार की बाधाओं का कारण बनता है. ज्‍योतिषाचार्य पंडित शशिशेखर त्रिपाठी के अनुसार यह दोष तब उत्पन्न होता है जब हमारे पूर्वजों की आत्माएं अप्रसन्न होती हैं, इस स्थिति में पितरों की नाराजगी का दुष्प्रभाव पीढ़ियों पर पड़ता है. पितृ दोष न केवल व्यक्तिगत जीवन में चुनौतियां उत्पन्न करता है, बल्कि परिवार और समाज के साथ रिश्तों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है. पितृ दोष के समाधान के लिए पितृपक्ष को सबसे उत्तम समय माना गया है. पितृपक्ष वह अवधि है जब हम अपने पूर्वजों और पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, उनके लिए विशेष अनुष्ठान और तर्पण करते हैं, ताकि उनकी आत्माएं शांति प्राप्त कर सकें.


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पितृ दोष से उत्पन्न समस्याएं


पारिवारिक समस्याएं : घर में निरंतर कलह, आपसी रिश्तों में खटास और मानसिक तनाव जैसी स्थिति पितृ दोष के प्रभाव से उत्पन्न हो सकती हैं. खासकर पिता या पितृ पक्ष से जुड़े रिश्तों में विवाद बना रहता है.


आर्थिक कठिनाइयां : पितृ दोष के कारण व्यक्ति को आर्थिक हानि, धन की कमी, या स्थायी रूप से कर्ज़ का सामना करना पड़ता है. मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिल पाती और तरक्की में रुकावट आती हैं.   


स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं : पितृ दोष से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है. बार-बार बीमार पड़ना, लाइलाज बीमारी होना या मानसिक और शारीरिक अस्वस्थता भी इसके संकेत हो सकते हैं.


संतान प्राप्ति में बाधा : कई बार पितृ दोष के कारण संतान सुख में बाधाएं आती हैं. गर्भधारण में कठिनाई या संतानों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी इसका संकेत हो सकती हैं.


करियर और शिक्षा में असफलता : कई बार व्यक्ति के करियर या शिक्षा के क्षेत्र में असफलता का कारण पितृ दोष होता है. परीक्षा में बार-बार असफल होना या रोजगार के अवसरों में लगातार नाकामयाबी पितृ दोष का परिणाम हो सकता है.


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पितृदोष का रिश्तों से कनेक्शन 


ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है और इसका सीधा संबंध व्यक्ति के पिता से होता है. कुंडली में सूर्य की स्थिति देखकर पिता के जीवन और उनके साथ संबंधों का विश्लेषण किया जाता है. शनिदेव, जो सूर्य के पुत्र हैं, ज्योतिषीय दृष्टि से उनके विरोधी माने जाते हैं. इसी प्रकार, राहु को दादा और केतु को नाना का कारक ग्रह कहा जाता है. जब कुंडली में सूर्य, शनि और राहु का आपस में संबंध बनता है और यह योग विशेष रूप से नवम भाव से जुड़ता है, तो इसे पितृ दोष का संकेत माना जाता है.  


 - सूर्य के साथ शनि है तो निस्संदेह यह पितृ दोष है. सूर्य और शनि का संबंध यह बताता है कि यह पितृ दोष हाल की ही पीढ़ियों का है अर्थात पितरों की नाराजगी बहुत लंबी नहीं है यदि प्रायश्चित के साथ ही इसका परिहार किया जाए तो पितर अपना गुस्सा त्याग सकते हैं.  


- सूर्य यदि राहु के साथ हो तो समझना चाहिए कि मामला कई पीढ़ियों पीछे का है और पितरों की शांति का उपाय न करने के कारण उनका कोप बढ़ता जा रहा है इसलिए जिन लोगों की कुंडली में राहु और सूर्य साथ में हैं, उन्हें बिना देरी किए पितृ दोष का उपाय करना प्रारम्भ कर देना चाहिए.  


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)