Shanidev Upay: हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है. यानी व्यक्ति जैसा कर्म करता है. वैसा ही फल शनिदेव देते हैं. ना ही कम ना ही ज्यादा. 


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अकसर लोग सोचते हैं कि शनिदेव को प्रसन्न करना बेहद मुश्किल है. लेकिन ऐसा नहीं है. शनिदेव जिस भी जातक के कर्मों से खुश होते हैं, उसको मालामाल कर देते हैं. तरक्की के योग खुद-ब-खुद बन जाते हैं और रुके हुए काम भी दौड़ने लगते हैं. 


इन राशियों पर रहती है शनिदेव की कृपा


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिदेव कुंभ और मकर राशि के स्वामी हैं. तुला राशि भी उनकी बेहद प्रिय है. इन राशि के जातकों पर उनकी विशेष कृपा रहती है. अगर किसी शख्स की कुंडली में शनि की स्थिति अच्छी नहीं है तो उसको कष्टों के भंवर से गुजरना पड़ता है. इतना ही नहीं, उसकी जिंदगी में मुश्किलें बनी रहती हैं. 


शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार का दिन सबसे खास माना जाता है. दान-दक्षिणा और अन्य उपायों से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और दोषों से मुक्ति देते हैं. अब आपको बताते हैं शनिदेव को प्रसन्न करने के आसान उपाय.


  • शनिवार को सूरज उगने से पहले पीपल के वृक्ष की पूजा करें. उस पर जल चढ़ाएं और शाम को  सरसों के तेल का दीपक जलाएं. उसमें आप तिल भी डाल दें. ऐसा करने से जातक को शनिदेव की कृपा मिलती है. 

  • हिंदू धर्म में दान का बहुत ज्यादा महत्व है. इसलिए शनिवार को जो लोग सरसों का तेल, काली उदड़, काला छाता, काला तिल का दान करते हैं, उनको शनिदेव का आशीर्वाद मिलता है.  

  • इस दिन व्रत रखने का भी नियम है. शनिदेव की कृपा पाने के लिए आप गरीबों की मदद भी कर सकते हैं. इससे आपकी मुश्किलें कम हो सकती हैं.

  • पूजा-पाठ से भी आप शनिदेव को खुश कर सकते हैं. लोहे के दीपक में आप सरसों का तेल डालें और दीया जलाएं. इससे दुर्घटनाओं से बचाव होता है.

  • सूर्यास्त के बाद शनिवार के दिन हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का भी पाठ कर सकते हैं. हनुमान जी के भक्तों को शनिदेव परेशान नहीं करते.


शनिदेव को प्रसन्न करने वाले सरल मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।


शनि गायत्री मंत्र
ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि ।


शनि बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः ।।


शनि स्तोत्र
ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम ।।


शनि पीड़ाहर स्तोत्र


सुर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रिय: ।
दीर्घचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: ।।
तन्नो मंद: प्रचोदयात ।। 


दशरथकृत शनि स्तोत्र


प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥


रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् .


सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥


याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं .


एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥


प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा .


पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥


दशरथकृत शनि स्तोत्र:


नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च .


नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥


नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च .


नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥


नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: .


नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥


नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: .


नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥


नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते .


सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥


अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते .


नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥


तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च .


नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥


ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे .


तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥


देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: .


त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥


प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे .


एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥


दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् .


अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥