Banke Bihari Temple Katha Vrindavan: वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर ऐतिहासिक और चमत्कारों से भरा है. यहां पर भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की मूर्ति को बार-बार पर्दा किया जाता है. भगवान कृष्ण की लीलाओं से ओतप्रोत मथुरा के वृंदावन स्थित इस मंदिर में रोजाना हजारों श्रद्धालु आते हैं. वृंदावन के कण-कण में भगवान श्री कृष्ण का वास माना जाता है. वृंदावन की गलियों में भगवान कृष्ण ने लीलाएं की थीं. आइए जानें बांके बिहारी मंदिर का क्या इतिहास है और बांके बिहारी जी कैसे प्रकट हुए थे और उनकी मूर्ति के आगे बार-बार पर्दा क्यों डाला जाता है?


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बांके बिहारी की मूर्ति


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्वामी हरिदास भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे. वो हमेशा भगवान कृष्ण की प्रेम भाव से निधिवन में भक्ति किया करते थे. उनके हृदय में भगवान श्रीकृष्ण बसे थे. भगवान कृष्ण ने स्वामी हरिदास की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और निधिवन में काले रंग की पत्थर की मूर्ति के रूप में प्रकट हुए. कुछ दिन तो स्वामी हरिदास ने निधिवन में ही बांके बिहारी की पूजा की. उसके बाद अपने परिजनों की सहायता से बांके बिहारी मंदिर का निर्माण करवाया. ऐसी मान्यता है जो भक्त बांके बिहारी के दर्शन करता है वह उन्हीं का हो जाता है. भगवान के दर्शन और पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं.


बांके बिहारी के चरणों के दर्शन 


इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है. मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं. इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है. हर साल मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बिहारीजी का प्रकटोत्सव मनाया जाता है. वैशाख माह की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है उस दिन पूरे एक साल में सिर्फ इसी दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं. इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन बहुत शुभ फलदायी होता है.


बार-बार पर्दा लगाने की कथा


आप अगर बांके बिहारी के मंदिर गए होंगे तो आपने देखा होगा कि भगवान की प्रतिमा के आगे बार-बार पर्दा डाला जाता है. यानी उनके दर्शन लगातार नहीं बल्कि टुकड़ों में कराये जाते हैं. एक कथा के अनुसार, आज से 400 साल पहले तक बांके बिहारी के मंदिर के आगे पर्दा डालने की प्रथा नहीं थी. भक्त जितनी देर तक चाहे उतनी देर तक मंदिर में रुक सकते थे और ठाकुर जी के दर्शन कर सकते थे. एक बार एक भक्त बांके बिहारी के दर्शन के लिए श्रीधाम वृंदावन आए. तब वह लगातार टकटकी लगाकर भगवान बांके बिहारी जी की मूर्ति को निहारने लगे. उस दौरान भगवान उस भक्त के प्रेम में वशीभूत होकर उनके साथ ही चल दिए. जब पंडित जी ने मंदिर में देखा कि भगवान कृष्ण की मूर्ति नहीं है तो उन्होंने भगवान से बड़ी मनुहार की और वापस मंदिर में चलने को कहा और तभी से हर 2 मिनट के अंतराल पर ठाकुर जी के सम्मुख पर्दा डालने की परंपरा की शुरुआत हो गई.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)


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