नई दिल्ली: जीवन में कर्ज का मर्ज एक बार लग जाए तो जल्दी से छूटता नहीं है। कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि वह किसी के कर्ज तले दबे रहे, लेकिन कई बार इंसान के हालात ऐसे हो जाते हैं कि वह चाह कर ऋण के बोझ से मुक्त नहीं हो पाता है। सनातन परंपरा में कर्ज के मर्ज को दूर करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। जिन्हें करके आप शीघ्र ही अपने सिर के बड़े बोझ को दूर करने में कामयाब हो सकते हैं।


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मंगलवार को करें ये महाउपाय


ज्योतिष के अनुसार यदि आपकी कुंडली में मंगलदोष हो तो मंगलवार के दिन विशेष पूजा करने से इस दोष से मुक्ति मिलती है। कर्ज से मुक्ति के लिए जातक को किसी भी मास के मंगलवार से मंगलवार का व्रत रखना शुरु करना चाहिए। इस व्रत को कम से कम 21 मंगलवार को जरूर रखना चाहिए। व्रत वाले दिन यानि मंगलवार को सुबह स्नान-ध्यान करके लाल वस्त्र धारण करें और उसके बाद मंगल की विधि-विधान से पूजा करके मंगल के तांत्रिक मंत्र का जाप करें। ध्यान रहे कि मंगलवार का व्रत रखते हुए मंगलवार के दिन भूलकर भी नमक का सेवन न करें। इस व्रत के अंतिम मंगलवार को हवन आदि करके किसी ब्राह्मण को मंगल से संबंधित वस्तुओं का विशेष रूप से दान करें।


ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ


- कर्ज से मुक्ति पाने के लिए मंगलवार को ऋण मोचन अंगारक स्तोत्र का पाठ विशेष फलदायी है। ऋणमोचक मंगल स्तोत्र पाठ को शुरू करने से पहले आपको किसी योग्य पंडित से इसकी शुभ तिथि जरूर विचार करवा लेनी चाहिए। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए इस पाठ को मंगलवार के दिन ही शुरु करना चाहिए। ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ हमेशा लाल रंग के कपड़े पहन कर, लाल रंग के आसन पर बैठकर ही करना चाहिए। आपको यह पाठ अपनी श्रद्धा के अनुसार 1, 3, 5, 9, अथवा 11 पाठ 43 दिनों तक प्रतिदिन करना है। ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का नियमित पाठ करते रहने से निश्चित रूप से धीरे-धीरे आपका कर्ज उतर जाएगा।


॥ ऋणमोचक मंगल स्तोत्र ॥


मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।


स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः ॥1॥


लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।


धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः॥2॥


अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।


व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः॥3॥


एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।


ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्॥4॥


धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।


कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥5॥


स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।


न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्॥6॥


अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।


त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय॥7॥


ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।


भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा॥ 8 ||


अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।


तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्॥9॥


विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।


तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः॥10॥


पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।


ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः॥11॥


एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।


महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा॥12॥


॥इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥