Lord Vishnu: भगवान विष्णु, यानि श्री हरि, चार मास की शयन अवधि में चले जाते हैं, इसी अवधि को हिन्दू धर्म में चातुर्मास कहा गया है. इस बार हरि 17 जुलाई बुधवार को विश्राम करने चले जाएंगे जिसे देवशयनी एकादशी के रूप में मनाया जाएगा. भगवान के जागने पर देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है. मान्यता है कि जब भगवान विष्णु विश्राम करते हैं, तब संसार में शुभ कार्य नहीं करने चाहिए. इस दौरान सिर्फ नियमित पूजा-पाठ और ध्यान कर सकते हैं. जिस दिन भगवान विष्णु शयन ग्रहण करते हैं, उसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है. 


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देवशयनी एकादशी का महत्व


इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से पापों का नाश होता है और माना जाता है कि इस दीप दान करने से  पुण्यों की प्राप्ति होती है.


इस समय मन शांत होता है और भक्ति में लगता है, जिससे सद्गति प्राप्त होती है.


पुराणों में बतलाया गया है कि इन चार मास में दान करने से  जन्मों जन्म के पाप नष्ट होते है और पुण्यों में वृद्धि होती है.


देवशयनी एकादशी व्रत की विधि


इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और उनका पूजन करें. तुलसी दल, फल, फूल और मिठाई का भोग लगाएं. दिन भर व्रत रखें और केवल सात्विक भोजन करें. रात्रि में भगवान विष्णु की कथा सुनें और जागरण करें. अगले दिन द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें. देवशयनी एकादशी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है.


क्या  करें और क्या न करें


चातुर्मास का समय बहुत खास होता है. इस दौरान कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे देवता रुष्‍ट हो जाएं. वहीं वो काम करने पर ध्‍यान देना चाहिए, जिससे देवी-देवताओं को लाभ हो. चातुर्मास में की गई पूजा आराधना सारे पाप नष्‍ट कर देती है और जीवन में सुख-समृद्धि लाती है.    


चातुर्मास में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.


इस अवधि में मांस, मादक पदार्थ का सेवन और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए.


धार्मिक स्थल जाना, पूजा पाठ के साथ ही घर में धार्मिक कार्यक्रम कराते रहना चाहिए.