Ear Piercing: हिंदू धर्म में क्या है कर्णवेध संस्कार का महत्व, दिलाता है कई प्रकार के कष्टों से मुक्ति, होता है बुद्धि का विकास
Karnavedha Sanskar: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सौलाह संस्कारों में कर्णवेध संस्कार सबसे अहम संस्कार माना जाता है. इस संस्कार में बच्चों की बुद्धि को बढ़ाने के अलावा कई प्रकार के कष्टों को दूर करने के लिए कराया जाता है. विस्तार में जानते हैं कि कर्णवेध संस्कार कराने की सही उम्र और उसके फायदें क्या हैं.
Astrological Reasons For Ear Piercing: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गर्भधारण में पल रहे शिशु से लेकर उसके जीवन के अंत तक को 16 संस्कारों में विभाजित किया गया है जो कि हर उम्र के पड़ाव पर बच्चे को कैसे और क्यों करना चाहिए इसके बारे में बताता है. दरअसल संस्कार की यह प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है.
इन्हीं 16 संस्कारों में सबसे अहम कर्णवेध संस्कार को माना जाता है. दरअसल इस संस्कार के जरिये ही बच्चों की याददशत को और भी तेज बनाया जाता है. कर्णवेध संस्कार ना केवल बच्चों की बुद्धि बढ़ाने का काम करती है बल्कि यह राहु केतु के दोष को भी दूर करने में मदद करती है. चलिए ज्योतिष शास्त्र में विस्तार में जानते हैं कि कर्णवेध संस्कार की सही उम्र क्या है और इसके क्या क्या लाभ हैं!
कर्णवेध संस्कार करने की वजह
कर्णवेध 16 संस्कारों में से सबसे अहम संस्कार माना जाता है. दरअसल कर्णवेध संस्कार में ही बच्चों के कान छिदवाए जाते हैं. बता दें कि ऐसा करने से बच्चों की याददाश्त तेज होती है. ज्योतिष कारण की बात करें तो कान छिदवाने से राहु केतु के दोष को दूर करने में भी मदद मिलती है. इतना ही नहीं यह नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करने में मदद करता है.
कर्णवेध की सही उम्र
कर्णवेध यानी कि कान छिदवाने की सही उम्र के बारे में बात करें तो यह बच्चे के जन्म होने के दसवें, बारहवें, सोलहवें, छठे, सातवें या फिर आठवें महीने में कराया जा सकता है. या फिर शून्य से तीन और पांच से सात साल की आयु तक में भी बच्चों कर्णवेध संस्कार करवा सकते हैं. प्राचीन काल में भी गुरुकुल जाने से पहले बच्चे कर्णवेध करा कर ही जाया करते थे.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)