Ganesh Chaturthi Katha: विघ्नहर्ता गणेश जी ने मानव से लेकर ऋषि मुनियों और देवताओं के हित का सदैव ध्यान रखा है और समय समय पर उन्होंने अवतार भी लिए हैं जिनमें पहला अवतार वक्रतुंड अर्थात ब्रह्मरूप से संपूर्ण शरीरों को धारण करने वाला माना जाता है. यह अवतार भी उन्होंने एक ऐसे असुर को सबक सिखाने के लिए लिया जिसने सभी देवताओं के साथ भगवान शंकर को पराजित कर कैलाश पर कब्जा कर लिया था. 


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भगवान गणेश ने लिया वक्रतुंड का अवतार
इस असुर का नाम था मत्सरासुर, इसका वध करने के लिए गणेश जी ने वक्रतुंड का शरीर धारण करने के साथ ही अपना परम्परागत वाहन मूषक को छोड़ सिंह को बनाया. मत्सरासुर का जन्म देवराज इंद्र के प्रमाद अर्थात मद, अभिमान, प्रभुत्व आदि के भ्रम से हुआ था. उसने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से भगवान शिव के मंत्र की दीक्षा लेकर घोर तप किया और उनसे अभय होने का वरदान पाया. इसके बाद वह दैत्यों का राजा बन गया तो विशाल सेना के साथ विभिन्न राजाओं को हराकर पृथ्वी लोक पर कब्जा कर लिया. महा पराक्रमी दैत्य ने पाताल और स्वर्ग पर भी चढ़ाई कर दी. वरुण, कुबेर, यम आदि देवता उससे पराजित होकर भाग खड़े हुए और वह स्वर्ग का सम्राट बन बैठा.  


भगवान वक्रतुंड से मांगी जीवन की भीख
दुखी देवता भगवान ब्रह्मा और विष्णु को लेकर कैलाश पहुंचे. जानकारी मिलने पर मत्सरासुर ने कैलाश पर भी हमला बोल दिया. शिव जी से घनघोर युद्ध हुआ पर वह भी उसके सामने न ठहर सके. उसने कैलाश पर भी आधिपत्य कर लिया. उसी समय वहां भगवान् दत्तात्रेय पहुंचे और उन्होंने देवताओं को वक्रतुंड के एकाक्षरी मंत्र “गं“ का उपदेश दिया. देवता की आराधना पर तत्काल वक्रतुण्ड प्रकट हुए. भगवान वक्रतुंड ने देवताओं को आश्वस्त किया और असंख्य गणों के साथ मत्सरासुर को घेर लिया. पांच दिनों तक भयंकर युद्ध चला. मत्सरासुर के दोनों पुत्र मारे गए. मत्सरासुर को चेतावनी देते हुए भगवान वक्रतुण्ड ने कहा 'यदि तुझे प्राण प्रिय हैं तो शस्त्र रखकर मेरी शरण में आ जा नहीं तो मारा जाएगा. भगवान वक्रतुण्ड का भयानक रूप देखकर मत्सरासुर व्याकुल हो गया, उसकी सारी शक्ति क्षीण हो गयी. भयभीत दैत्यराज ने वक्रतुंड की स्तुति कर जीवन की भीख मांगी तो भगवान ने अभय देते हुए अपनी भक्ति का वरदान दे पाताल में शांति से जीवन बिताने का आदेश दिया.