Geeta Gyan: गीता के अनुसार हार मानने वाला व्यक्ति बन जाता है पाप का भागीदार, जानें सफलता का मूल मंत्र
Gita updesh: श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के उन उपदेशों का वर्णन मिलता है जो उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को दिए थे. आज उस उपदेश के बारे जानेंगे जो व्यक्ति को हर परिस्थिति में सफलता हासिल करने में मदद करता है.
Gita updesh on success: हिंदू धार्मिक ग्रंथों में श्रीमद्भागवत गीता को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के उन उपदेशों का वर्णन मिलता है जो उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को दिए थे. गीता के ये उपदेश आज भी लोगों को जीवन पर सही राह चलने में मदद करते हैं. गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं जो धर्म के मार्ग पर चलने के साथ अच्छे कर्म करने की शिक्षा देते हैं.
इसके साथ ही जीवन की समस्त कठनाइयों को दूर करने के लिए और सफळता पाने के लिए इन उपदेशों का स्मरण करना जरूरी है. ऐसे में आज गीता के कुछ महत्वपूर्ण उपदेश के बारे में जानते हैं जो व्यक्ति को जीवन में सफलता हासिल करने में मदद करता है और असफलता में भी हार न मानने की सलाह देता है.
खुद को कमजोर समझना है पाप के बराबर
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप होता है. यदि कोई हार मान लें तो उसका हार निश्चित है. यदि कोई आप गिरते हो तो पूरी ताकत से उठने का प्रयास करो. प्रयास करो औऱ बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप।
श्रीमद्भागवत गीता के इस श्लोक का अर्थ है कि इंसान को कभी भी अपने अंदर कमजोरी को नहीं लाना चाहिए. किसी भी परिस्थिति का उसे डट कर सामना करना चाहिए. कमजोरी या दुर्बलता को अपने अंदर लाने वाला पापी कहलाता है. किसी भी समस्या का डटकर सामना करना मनुष्य का पहला कर्तव्य होता है.
श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि किसी भी परिस्थिति में हार मानना और खुद को कमज़ोर समझना व्यक्ति को पाप का भागीदार बनाता है. व्यक्ति को हमेशा अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और साहस से निभाना चाहिए और परिणाम की चिंता प्रभु पर छोड़ देना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)