नई दिल्ली: जिस तरह चैत्र और शारदयी नवरात्रि (Shardiya Navratri) के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, उसी तरह गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri) के दौरान मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं (Mahavidya) की पूजा अर्चना की जाती है. मां दुर्गा की इन्हीं 10 महाविद्याओं में से एक हैं देवी मातंगी (Devi Matangi). पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मतंग भगवान शिव (Lord Shiva) का नाम है और उनकी शक्ति मातंगी हैं. इस तरह से देवी मातंगी माता पार्वती का ही एक रूप हैं. मातंगी देवी को प्रकृति की देवी, वाणी और कला संगीत की देवी भी कहा जाता है. 


देवी मातंगी का कैसा है रूप?


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पौराणिक कथाओं के अनुसार मां दुर्गा (Goddess Durga) के आशीर्वाद से ऋषि मतंग के घर कन्या के रूप में जन्म लेने की वजह से इनका नाम मातंगी पड़ा. देवी मातंगी के रूप की बात करें तो उनका रंग गहरा नीला है. अपने मस्तक पर इन्होंने अर्ध चन्द्र धारण कर रखा और मां के 3 ओजपूर्ण नेत्र हैं. माता रत्नों से जड़े सिंहासन पर आसीन हैं. देवी मातंगी के एक हाथ में गुंजा के बीजों की माला है तो दाएं हाथों में वीणा और कपाल और बाएं हाथ में खड़ग. देवी मातंगी अभय मुद्रा में हैं.


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मां मातंगी के लिए व्रत नहीं रखा जाता 


ऐसी मान्यता है कि मातंगी देवी एक मात्र ऐसी देवी हैं जिनके लिए कोई व्रत (No fast for Matangi devi) नहीं रखा जाता. यह देवी केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं. इतना ही नहीं ऐसी मान्यता है कि देवी मातंगी को जूठन का प्रसाद या भोग (Leftover food as prasad) अर्पित किया जाता है. आखिर इसके पीछे की कहानी क्या है, यहां जानें.


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जूठन के भोग से जुड़ी कथा


पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी (Lord Vishnu and Goddess Lakshmi), भगवान शिव और मां पार्वती से मिलने कैलाश पहुंचें. भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री लेकर आए थे जिसे उन्होंने शिव जी को भेंट में दिया. भगवान शिव और मां पार्वती ने विष्णु जी से उपहार में मिले भोजन को खाया तो भोजन का कुछ हिस्सा धरती पर गिर गया. उन गिरे हुए भोजन से श्याम वर्ण वाली एक देवी ने जन्म लिया जो मातंगी देवी के नाम से विख्यात हुईं. यही वजह है कि मां मातंगी को जूठन का भोग लगाया जाता है.


(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)


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