वृंदावन: दिवाली के त्यौहार के अगले ही दिन गोवर्धन पूजा (Gowardhan Puja) की परंपरा रही है. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. इसी दिन भगवान इंद्र (Lord Indra) के क्रोध से गोकुल वासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था. भगवान श्रीकृष्ण (Shrikrishna) ने इंद्र के क्रोध से न सिर्फ गोकुल वासियों की रक्षा की, बल्कि घमंडी इंद्र का घमंड भी चूर चूर कर दिया था. लेकिन क्या आपको पता है कि दुनिया के हर पर्वत का जहां विस्तार हुआ,वहीं गोवर्धन का लगातार क्षरण क्यों हुआ?


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शक्तिशाली और सुंदरता का सम्मिश्रण थे गोवर्धन
गोवर्धन पर्वत बेहद शक्तिशाली थे. वनों और हरियाली से परिपूर्ण गोवर्धन की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली थी. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक गोवर्धन पर्वत की ऊंचाई एवरेस्ट के दोगुने से भी अधिक थी, यही वजह थी कि सूर्य का प्रकाश भी उन्हें पार करके पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता था. लेकिन अब गोवर्धन पर्वत को कोई बच्चा भी पार कर जाता है. ऐसा क्यों है? आज हम आपको यही बता रहे हैं.


ऋषि पुलस्त्य से जुड़ी है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक गोवर्धन पर्वत महर्षि द्रोणांचल के पुत्र थे. उन्हें पृथ्वी पर पर्वतों का राजा कहा जाता था. लेकिन एक बार काशी के रहने वाले ऋषि पुलस्त्य ने उन्हें देखा और ये सोचा कि काशी की समतल भूमि के पास अगर गोवर्धन अपना निवास बना लें तो इससे समतल प्रदेश को भी बहुत सारा फायदा होगा. ये बात मन में आने के बाद उन्होंने द्रोणांचल से उनके पुत्र को मांग लिया. पहले के जमाने में ऋषियों का इतना सम्मान था कि उन्हें किसी चीज की मनाही नहीं थी. ऐसे में भारी मन से द्रोणांचल ने ऋषि पुलस्त्य को अपना पुत्र सौंप दिया.


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गोवर्धन ने रखी शर्त
गोवर्धन ने जब ये सुना कि ऋषि पुलस्त्य ने उन्हें अपने साथ काशी ले तलने के लिए उन्हें उनके पिता से मांग लिया है, तो वो खुश नहीं हुए. हालांकि ऋषि पुलस्त्य की भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्होंने एक शर्त रख दी. उन्होंने कहा कि ऋषिवर, मैं 2 योजन ऊंचा हूं और मेरे शरीर की चौड़ाई 5 योजन है. ऐसे में आप मुझे लेकर कैसे चलेंगे? मैं तो पृथ्वी पर सबसे ऊंचा पर्वत हूं. ऋषि पुलस्त्य ने कहा कि वो इसके बारे में चिंता न करें. उन्हें वो अपने तपबल के दम पर काशी ले जाएंगे. तभी गोवर्धन ने शर्त रखा दी कि वो काशी चलेंगे, लेकिन इसी शर्त पर कि उन्हें रास्ते में कहीं धरती का स्पर्श न मिले. ऋषि पुलस्त्य ने ये शर्त मान ली.


गोकुल में भगवान श्रीकृष्ण पर मोहित हुए गोवर्धन
कहा जाता है कि ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन को अपने तपबल पर जमीन से ऊपर उठा लिया और उन्हें लेकर काशी को रवाना हुए. इस बीच रास्ते में वो श्रीकृष्ण को देखकर मोहित हो गए. ऐसे में गोवर्धन ने अपना आकार बढ़ामा शुरू कर दिया. जिससे ऋषि पुलस्त्य का तपबल थोड़ा कमजोर पड़ गया और उन्होंने गोकुल (Gokul) में गोवर्धन को धरती पर रख दिया.


ऋषि पुलस्त्य ने दिया श्राप
गोकुल में गोवर्धन ने जब आसन जमा लिया तो ऋषि पुलस्त्य ने उन्हें उठाने के लिए पूरा जोर लगा दिया. ऋषि पुलस्त्य जितना जोर लगाते, गोवर्धन अपना भार उतना ही बढ़ा देते. जिसके बाद ऋषि पुलस्त्य (Pulastya) नाराज हो गए और उन्होंने श्राप दिया कि धरती के सारे पहाड़ बढ़ते रहेंगे लेकिन तुम्हारा हर दिन क्षरण होता रहेगा. तब से लगातार गोवर्धन की लंबाई और चौड़ाई कम होती गई. हालात ये हैं कि गोवर्धन अब सिर्फ नाम भर के पर्वत बचे हैं. और अब तो महज एक गांव की चौहद्दी तक ही सिमट कर रह गए हैं.