Govatsa Dwadashi 2023 Date: भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन गोवत्स पूजा की जाती है. इस दिन दोपहर होने से पहले ही गाय के बछड़े को सजाकर उसकी पूजा करने का विधान है. मूंग, मोठ तता बाजरे को एक दिन पहले ही भिगोकर अंकुरित कर लेना चाहिए और पूजन करने के बाद बछड़े को भोग खिलाना चाहिए. इस दिन जो महिलाएं व्रत रखती हैं,उनके भोजन में भी मूंग, मोठ और बाजरे की प्रधानता होती है. 


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इस दिन गाय का दूध, दही या घी का प्रयोग वर्जित माना जाता है. हां, भैंस का दूध और उससे बना हुआ दही अथवा घी का उपयोग किया जा सकता है. इस बार गोवत्स द्वादशी का पर्व 11 सितंबर के दिन सोमवार को मनाया जाएगा. 


व्रत कथा 


एक बार एक दिन पहली बार भगवान श्रीकृष्ण जंगल में गाय बछड़ों को चलाने गए थे. उस दिन माता यशोदा ने भारी मन से श्रीकृष्ण का श्रृंगार कर उन्हें गोचारण के लिए तैयार किया था. पूजा-पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े को खोल दिया. उनके साथ ही माता यशोदा ने उनके बड़े भाई को भी भेजा और साथ में सख्त निर्देश दिया कि बछड़ों को चराने के लिए बहुत अधिक दूर तक जाने की कोई जरूरत नहीं हैं. आसपास ही गायों और बछड़ों को चराते रहना. 


इतना ही नहीं मां ने यह भी कहा कि कृष्ण को अकेले बिल्कुल भी न छोड़ना, क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है. इसके साथ ही उन्होंने यह हिदायत भी दी कि यमुना नदी की तरफ तो बिल्कुल भी न जाने और इस बात का पूरा ध्यान रखना की आपस के मित्रों से किसी तरह का झगड़ा न होने पाए. बलराम ने भी श्रीकृष्ण का पूरा ध्यान रखा और मां के निर्देशों का पालन करते हुए शाम को गायों और बछड़ों के साथ वह लौट आए. तब से गोपालक गोवत्सचारण की इस तिथि को गोवत्स द्वादशी का पर्व मनाने लगे.


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