Thursday Vishnu Chalisa: हिंदू धर्म में सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का ध्यान करने से भक्तों को श्री हरि और मां लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है. शास्त्रों में बताया गया है कि गुरुवार के दिन पूजा-पाठ करने के साथ-साथ व्रत आदि रखने से भी भगवान विष्णु को प्रसन्न किया जाता है. इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व बताया गया है. भगवान विष्णु के साथ केले के पेड़ की पूजा करने, उन्हें चने की दाल और गुड़ अर्पित करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी हो जाती हैं. इस दिन विष्णु चालीसा  और विष्णु आरती से भी खास लाभ होता है. 


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श्री विष्णु चालीसा (Shri Vishnu Chalisa)


दोहा


विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।


कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय।


चौपाई


नमो विष्णु भगवान खरारी।


कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥


प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।


त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥


सुन्दर रूप मनोहर सूरत।


सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥


तन पर पीतांबर अति सोहत।


बैजन्ती माला मन मोहत


शंख चक्र कर गदा बिराजे।


देखत दैत्य असुर दल भाजे॥


सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।


काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥


संतभक्त सज्जन मनरंजन।


दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥


सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।


दोष मिटाय करत जन सज्जन॥


पाप काट भव सिंधु उतारण।


कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥


करत अनेक रूप प्रभु धारण।


केवल आप भक्ति के कारण॥


धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।


तब तुम रूप राम का धारा॥


भार उतार असुर दल मारा।


रावण आदिक को संहारा॥


आप वराह रूप बनाया।


हरण्याक्ष को मार गिराया॥


धर मत्स्य तन सिंधु बनाया।


चौदह रतनन को निकलाया॥


अमिलख असुरन द्वंद मचाया।


रूप मोहनी आप दिखाया॥


देवन को अमृत पान कराया।


असुरन को छवि से बहलाया॥


कूर्म रूप धर सिंधु मझाया।


मंद्राचल गिरि तुरत उठाया॥


शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।


भस्मासुर को रूप दिखाया॥


वेदन को जब असुर डुबाया।


कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया॥


मोहित बनकर खलहि नचाया।


उसही कर से भस्म कराया॥


असुर जलंधर अति बलदाई।


शंकर से उन कीन्ह लडाई॥


हार पार शिव सकल बनाई।


कीन सती से छल खल जाई॥


सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।


बतलाई सब विपत कहानी॥


तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।


वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥


देखत तीन दनुज शैतानी।


वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥


हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।


हना असुर उर शिव शैतानी॥


तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे।


हिरणाकुश आदिक खल मारे॥


गणिका और अजामिल तारे।


बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥


हरहु सकल संताप हमारे।


कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥


देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे।


दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥


चहत आपका सेवक दर्शन।


करहु दया अपनी मधुसूदन॥


जानूं नहीं योग्य जप पूजन।


होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥


शीलदया सन्तोष सुलक्षण।


विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण॥


करहुं आपका किस विधि पूजन।


कुमति विलोक होत दुख भीषण॥


करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण।


कौन भांति मैं करहु समर्पण॥


सुर मुनि करत सदा सेवकाई।


हर्षित रहत परम गति पाई॥


दीन दुखिन पर सदा सहाई।


निज जन जान लेव अपनाई॥


पाप दोष संताप नशाओ।


भव-बंधन से मुक्त कराओ॥


सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।


निज चरनन का दास बनाओ॥


निगम सदा ये विनय सुनावै।


पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥


 


भगवान विष्णु की आरती (Bhagwan Vishnu Ki Aarti)


 


ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।


भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥


जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।


सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।


तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।


पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।


मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।


किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।


अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।


श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।


तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।


कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥


ओम जय जगदीश हरे...॥


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)