Kashi Holi 2024: भारत में रंगों के त्योहार होली का बहुत बड़ा महत्व है. कई क्षेत्रों में तो होली 15 दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है. फाल्गुन महीने में खेली जाने वाली होली इस साल 25 मार्च को मनाई जाएगी. मथुरा की लठमार होली, बरसाने की रंगों वाली होली, वृंदावन की फूलों वाली होली और लड्डू मार होली के लिए काफी प्रचलित है. लेकिन भारत में एक ऐसी भी जगह है जहां पर चिता की राख से भी होली खेली जाती है. 


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बता दें कि उत्तर प्रदेश की काशी जगह है जहां के एक घाट पर रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेली जाती है. आइए विस्तार में चिता की राख की होली के महत्व और इसके पीछे का कारण. 


रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से क्यों खेली जाती है होली


बता दें कि हर साल रंगभरी एकादशी के दिन और उसके अगले दिन उत्तर प्रदेश के काशी के दो घाटों मणिकर्णिका घाट और महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट पर चिता के राख वाली होली खेली जाती है. यह होली बिलकुल अलग और खास है क्योंकि चिता की राख से केवल और केवल यही दो घाटों पर ही होली खेली जाती है. इस दिन यहां पर बड़ी संख्या में लोगों की भारी भीड़ नजर आती है. बता दें कि हिंदू पंचांग के अनुसार होली के चार दिन पेहले खेले जाने वाली राख की होली 21 मार्च को मनाई जाएगी.


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भगवान शिव से जुड़ा है राख वाली होली का नाता


बता दें कि काशी में आज से नहीं बल्कि कई समय से ऐसी होली खेली जा रही है. दरअसल यह परंपरा काफी पुरानी मानी जाती है. मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव माता पार्वती को विवाह के बाद उन्हें अपने साथ इसी धाम पर लेकर आए थे. जिसके बाद भगवान शिव ने भूत, प्रेत, पिशाच, निशाचर और गणों के साथ भस्म वाली होली खेली थी. तभी से ही रंगभरी एकादशी के नाम से मणिकर्णिका घाट और महाश्मशान हरिश्चन्द्र घाट पर चिता की राख और भस्म वाली होली खेली जाती है. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)