होलिका पूजन से दूर होता है शनिदोष, जानिए कैसे की जाती है पूजा और क्या है शुभ मुहूर्त
इस बार होलिका दहन 20 मार्च को किया जाएगा. 20 मार्च 2019 को सुबह 10 बज कर 45 से भद्राकाल शुरु हो जाएगा और देर शाम 8 बजकर 59 तक रहेगा.
नई दिल्ली : पूरा देश होली के रंग में रंगा हुआ है. रंगों के इस पावन पर्व पर सारे बाजार गुलाल, पिचकारी और रंग से सज गए हैं. चारों ओर सिर्फ खुशियों का ही माहौल देखने को मिल रहा है. इस खुशी के त्योहार पर सभी अपने घरों से नकारात्मक शक्तियों को निकालने में जुटे हुए हैं. अगर आप भी इन दिनों किसी परेशानियों से जूझ रहे हैं तो आपको होलिका की पूजा करने की आवश्यकता है. होली के त्योहार से एक दिन पहले होलिका का पूजन करने से शनि दोष से छुटकारा मिलता है.
क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
इस बार होलिका दहन 20 मार्च को किया जाएगा. 20 मार्च 2019 को सुबह 10 बज कर 45 से भद्राकाल शुरु हो जाएगा और देर शाम 8 बजकर 59 तक रहेगा. इसके पश्चात रात 9 बजकर 28 मिनट से 11 बजे तक होलिका दहन की प्रक्रिया की जाएगी. ज्योतिषाचार्य के अनुसार, होलिका दहन भद्राकाल में नही की जाती है, अगर दहन की प्रक्रिया भद्राकाल में की जाती है तो इससे पारिवारिक और मानसिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है. होलिका दहन के अगले दिन फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है.
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क्या है होलिका दहन का पौराणिक महत्व
होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और एकता का प्रतीक है. होलिका दहन पर किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक कर सकते हैं. माना जाता है कि पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप राज करता था. उसने अपनी प्रजा को ईश्वर की जगह सिर्फ अपनी पूजा करने को कहा था, लेकिन प्रहलाद नाम का उसका पुत्र भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसने अपने पिता के आदेश के बावजूद भक्ति जारी रखी, जिसके लिये पिता ने प्रहलाद को सजा देने की ठान ली और प्रहलाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर दोनों को आग के हवाले कर दिया. दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी. लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे. उसी समय से समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिकादहन मनाया जाता है.
राधा-कृष्ण की मान्यता से भी जुड़ा है होली का त्योहार
होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. वसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है. होली के दिन वृन्दावन राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबा हुआ होता है. इसके अलावा होली को प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है. ऐसे प्रमाण मिले हैं कि ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से होली का त्योहार मनाया जा रहा है. होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमीमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है. प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां मिली हैं. विजयनगर की राजधानी हंपी में 16वीं सदी का एक मंदिर है. इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं.