दोष के तीन लग्न: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दोष को तीनों लग्न के अलावा सूर्य लग्न, शुक्र लग्न और चंद्र लग्न से भी देखते हैं. शास्त्रों की मान्यता है कि मांगलिक दोष वाले वर या कन्या का विवाह किसी मांगलिक दोष वाले व्यक्ति से कराना ही उचित होता है. ऐसा करने से उनके जीवन में मंगल का प्रभाव कम होने की संभावना बढ़ जाती है. 


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जीवनसाथी की मृत्यु: कुंडली में केवल मांगलिक दोष का होना ही आपके दांपत्य जीवन में सुख-दुख की संभावना या आपके जीवनसाथी की मृत्यु से पूरी तरह से संबंध नहीं रखता है. जन्म पत्रिका में अन्य शुभ-अशुभ कारक योगों का पूरी तरह से अध्ययन करने के बाद ही किसी निष्कर्ष  पर पहुंचना उचित रहता है क्योंकि कुंडली में कुछ संयोगों के बनने से मंगल दोष निष्प्रभावकारी हो जाता है.


मंगल दोष: अगर किसी वर या कन्या के जन्म पत्रिका में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश स्थान में कोई और पाप ग्रह जैसे शनि, केतु, राहु अगर विराजमान हो तो मंगल दोष का परिहार बढ़ जाता है . अगर मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल दोष का प्रभाव बिल्कुल ही खत्म हो जाता है. इसके अलावा अगर मंगल अपनी राशि मेष में , चतुर्थ भाव की राशि वृश्चिक और मकर के सप्तम भाव में विराजमान हो तब भी मांगलिक दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है. 


मांगलिक दोष के उपाय: अगर वर और कन्या के जन्म पत्रिका में लग्न से, चंद्र से और शुक्र से मांगलिक दोष कारक भाव जैसे लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश के जिस भाव में मंगल स्थित हो, दूसरे की जन्म पत्रिका में उसी भाव में मंगल के स्थित होने या उस भाव में कोई पाप ग्रह जैसे शनि, राहु-केतु के स्थित होने से मांगलिक दोष मान्य होता है. लेकिन वर और कन्या दोनों के अलग-अलग भावों में मंगल या दोष कारक पाप ग्रह स्थित हो तो इस परिस्थिति में मंगल दोष मान्य नहीं रह जाता है. 


Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. हमने इस खबर को लिखने में सामान्य जानकारियों और धार्मिक मान्यताओं की मदद ली है. इसके सही या गलत होने की पुष्टि ZEE NEWS हिंदी नहीं करता है.