Jammu Pandav Gufa: जब भीम के श्राप से चेनाब को साधनी पड़ गई चुप्पी, जम्मू की इस रहस्यमयी गुफा के पास आते ही हो जाती है शांत; कोई नहीं जान पाया राज
Jammu Pandav Cave Mystery: जम्मू-कश्मीर और पंजाब से होकर बहने वाली चेनाब नदी को अपने तेज बहाव और शोर की वजह से जाना जाता है. लेकिन जम्मू में एक जगह पर वो श्राप की वजह से वो एकदम शांत हो गई.
History of Jammu Pandav Cave: जम्मू से करीब 28 किलोमीटर दूर एक ऐसा रहस्यलोक है, जो पांडव गुफा के नाम से जाना चाहता है. ऊंची पहाड़ी और चिनाब नदी के किनारे स्थित इस गुफा से जुड़ी कई अद्भुत और रहस्यमयी कहानियां हैं. जो बेहद हैरान करती हैं. इस गुफा का इतिहास पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक लगभग 5155 साल पुराना है. कहा जाता है कि अपने अज्ञातवास के एक साल के दौरान पांडवों ने इस गुफा को अपना निवास स्थान बनाया था. यहां पांडव अपना नाम और वेश बदलकर गुप्त रूप से रहते थे.
अज्ञातवास के दौरान यहां पांडव द्रौपदी के साथ रहते थे. पांडवों के अज्ञातवास में ही भगवान श्रीकृष्ण भी उनसे मिलने इस गुफा में आए थे. जिसके प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं.
चेनाब नदी भी साध लेती है चुप्पी
जब ज़ी मीडिया की टीम इस गुफा का रहस्य जानने के लिए वहां पहुंची...तो चौंकाने वाला नजारा देखने को मिला...गुफा के पास से बहने वाली चेनाब नदी, जो सामान्य तौर पर अपने तेज़ बहाव और शोर के लिए जानी जाती है..वहां पूरी तरह से शांत थी. इस असाधारण दृश्य के पीछे की कहानी जानने के लिए टीम ने गुफा के पुजारी से संपर्क किया.
महाभारत काल में जब पांडव यहां अज्ञातवास में थे, तो चिनाब नदी का शोर उनकी तपस्या में बाधा डालता था...जिससे नाराज पांडव पुत्र भीम ने अपने बल और श्राप से इस नदी को शांत कर दिया. आज भी गुफा के पास 500 मीटर के दायरे में चिनाब नदी का पानी पूरी तरह शांत है, जबकि इसके आगे और पीछे ये नदी रौद्र रुप में बहती है.
सच जानकर इतिहासकार भी रह गए दंग
चिनाब नदी के बारे में जानकर हम दंग थे. कई सारे इतिहासकार..रिसर्च एनालिस्ट यहां इस गुफा तक आए..सच्चाई जानने के बाद सभी दंग रह गए..पौराणिक कथाओं में दर्ज इस सबूत पर किसी ने सवाल उठाने की हिम्मत नहीं की. गुफा के अंदर एक रहस्यमयी शिला भी है..ये शिला कितनी पवित्र और रहस्यमयी है इसकी सच्चाई जानकर आप हैरान रह जाएंगे.
ये तो रही शिला की पौराणिक कथा कलयुग में भी इस चमत्कारी शिला के प्रमाण देखने को मिले थे. दरअसल 1992 में इस इलाके में बाढ़ आई थी..उस वक्त हजारों साल पुराने बरगद के पेड़ के तने से ये शिला लिपटी थी. बाढ़ के पानी में बरगद का पेड़ तहस-नहस हो गया..बह गया...लेकिन ये पवित्र शिला टस से मस नहीं हुई. बाद में इसे गुफा के अंदर पूरे विधि विधान से स्थापित किया गया. तब से लगातार श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के पांव और उनकी गायों के पैरों की निशान वाली इस शिला की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं.
पांडवों से मिलने आए थे भगवान कृष्ण
पौराणिक कथाओं के मुताबिक अज्ञातवास के दौरान भगवान श्रीकृष्ण, पांडवों से मिलने इस गुफा में आए थे और भेष बदलकर बाल रूप में भगवान कृष्ण अपनी गायों के साथ यहां रुके. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में कौरवों को हराने की रणनीति भगवान श्रीकृष्ण ने इसी गुफा में पांडवों के साथ मिलकर बनाई थी.
हजारों साल पुरानी यह गुफा पांडवों की एक-एक निशानी के पक्के और सच्चे सबूत समेटे हुए है. पांडवों की इस गुफा में करीब पांच हजार साल पुराना शिवलिंग मौजूद है..यह शिवलिंग बेहद खास है. इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना से कालसर्प दोष तक दूर हो जाता है. जब पांचों पांडव द्रौपदी के साथ अज्ञातवास का समय बिता रहे थे. तब इसी पवित्र शिवलिंग की उन्होंने पूजा की थी. मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा से ही पांडवों को महाभारत में विजय मिली.
गुफा में पांचों पांडवों की प्रतिमा
इस गुफा में पांचों पांडवों की मूर्तियां भी स्थापित हैं. युद्धिष्ठर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव के साथ द्रौपदी की भी प्रतिमा इस गुफा में मौजूद हैं. दरअसल पांडवों ने इसी गुफा में महाभारत जीत की रणनीति बनाई थी..यहीं रुके, यहीं पर भगवान कृष्ण के साथ पांडवों की कई दौर की बैठकें हुईं..महाभारत के युद्ध में कौरवों को कैसे पटखनी देनी है..यह सबकुछ इसी गुफा में तय किया गया.
जब हनुमान जी ने दिए पांडवों को दर्शन
गुफा में हनुमान जी की भी हजारों साल पुरानी प्रतिमा है. कहते हैं जिस मंदिर में शिवजी और हनुमान जी विराजमान होते हैं उस मंदिर की महिमा और बढ़ जाती है. कहा जाता है कि हनुमान जी की यह मूर्ति स्वयं पांडव पुत्र भीम ने स्थापित की थी. भीम ने हनुमानजी की पूजा कर अपनी शक्ति और बल के लिए आशीर्वाद मांगे थे..मान्यता है कि हनुमानजी ने उन्हें साक्षात दर्शन देकर उन्हें सबसे बलशाली योद्धा होने का वरदान दिया.
पांडवों ने गुफा में हनुमान जी प्रतिमा इसलिए भी स्थापित की थी क्योंकि द्वापर युग में हनुमानजी का विशेष दर्शन अर्जुन को भी हुआ था. जिसके बाद हनुमानजी अर्जुन के रथ के ध्वज पर मौजूद होने के लिए सहमत हुए, जो उनके परम आशीर्वाद का प्रतीक है.
जब पांडव पहुंचे बाबा अमरनाथ के द्वार
इसी गुफा में अज्ञातवास बिताने के बाद पांडव, द्रौपदी के साथ बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए निकल पड़े. आज भी श्रद्धालु इस गुफा में दर्शन के लिए आते हैं..पांडवों के स्थापित शिवलिंग, हनुमान जी और भगवान अमरनाथ की पूजा अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद मांगते करते हैं.