Kaal Bhairav Jayanti: काशी के कोतवाल की जयंति आज, शिव के रूद्र रूप ने अंधकासुर को दिया था दंड
Kaal Bhairav Jayanti: मान्यताओं के मुताबिक एक बार अंधकासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव पर हमला बोल दिया था. तब महादेव ने उस राक्षस के संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति कर दी थी.
Kaal Bhairav Jyanti: धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक बाबा काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष को अष्टमी तिथि के प्रदोष काल में हुआ था. तभी से इस तिथि को भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक काशी नगरी की सुरक्षा की जिम्मेदारी बाबा काल भैरव को दी गई. इसीलिए उन्हें काशी के कोतवाल कहकर बुलाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कृष्णपक्ष की अष्टमी को उनका अवतार हुआ था. शास्त्रों के मुताबिक बाबा काल भैरव का अवतार भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी.
श्राप के कारण हुई थी काल भैरव की उत्पति
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक आगे चलकर शिव के दो रूप उत्पन्न हुए. पहले अवतार को बटुक भैरव के नाम से जाना जाता है वहीं दूसरो अवतार को काल भैरव कहते हैं. मान्यता के मुताबिक बटुक भैरव भगवान के बाल रुप को कहते हैं. इन्हें आनंद भैरव के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता के मुताबिक काल भैरव की उत्पत्ति श्राप के कारण हुई थी. ऐसे में उन्हें शंकर का रौद्र अवतार भी माना जाता है.
शत्रुओं से मिलती है मुक्ति
शिव के इस रूप यानि कि काल भैरव की आराधना से भय और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है. काल भैरव भगवान शिव के सबसे भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप को कहते हैं. शिव के इस अंश यानि कि काल भैरव को दुष्टों को दंड देने वाला माना जाता है. इसलिए काल भैरव को दण्डपाणी के नाम से भी जाना जाता है.
राक्षस ने किया था वध
मान्यताओं के मुताबिक एक बार अंधकासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव पर हमला बोल दिया था. तब महादेव ने उस राक्षस के संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति कर दी. अगर कोई भक्त शिव और शक्ति दोनों की एक साथ आराधना करना चाहता है तो पहले भैरव की आराधना करने के लिए बोला जाता है. कालिका पुराण की माने तो भैरव को महादेव का गण कहा गया है जबकि नारद पुराण में कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की पूजा इस दिन करने के लिए कहा गया है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)