Kalpwas In Prayagraj: प्रयागराज के संगम तट पर रहते हुए लोग कल्पवास करते हैं. कल्पवास करते समय एक माह नदी किनारे रहकर लोग इस नियम को पूरा करते हैं. सदियों से चली आ रही यह परंपरा प्रयागराज के संगम तट पर होता है. कल्पवास के समय संगम के तट पर निवास करना और वेदाध्ययन के साथ-साथ प्रभु के ध्यान में लीन होना. प्रयागराज संगम तट पर कल्पवास पौष माह के ग्यारहवें दिन से लेकर माघ महीने के 12 वें दिन तक किया जाता है. हालांकि, कुछ लोग इससे अलग यानि कि माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं.


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कल्पवास के नियम


जो भी व्यक्ति कल्पवास का संकल्प लेकर आता है, उसे प्रयागराज में ऋषियों या खुद की बनाई झोपड़ी (पर्णकुटी) में रहता है. कल्पवास के दौरान दिन-रात मिलाकर एक बार ही भोजन करने की प्रथा है. इस दौरान धैर्य और अहिंसा धर्म का पालन करते हुए भगवान की भक्ति में लीन होना पड़ता है.


दिनभर में करना होता है तीन बार स्नान


कल्पवास बहुत ही कठिन व्रत है. इस व्रत के दौरान सूर्योदय से पहले ही स्नान करना होता है. इसे बाद पूजा-पाठ और फिर 24 घंटे में मात्र एक बार भोजन करना होता है. उसके बाद दोपहर और शाम के वक्त भी स्नान करने का नियम है. परन्तु कुछ लोग सुबह और शाम को ही स्नान करते हैं दोपहर का स्नान नहीं करेत हैं.


प्रयाग में कल्पवास का क्या है महत्व


प्रयाग में कल्पवास का क्या महत्व है इसका इतिहास मत्स्य पुराण में बताया गया है. मत्स्य पुराण के मुताबिक जो भी व्यक्ति कल्पवास का संकल्प लेता है और इसे पूरा कर लेता है वह अगले जन्म में राजा चुना जाता है. हालांकि जो भी व्यक्ति इस दौरान मोक्ष की कामना करता है वह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को चला जाता है.


संगम तट पर बसता है आध्यात्मिक नगर


कल्पवास के लिए प्रयागराज में संगम के तट पर आध्यात्मिक नगर बसाया जाता है. यहां तमाम तरह की धार्मिक गतिविधियां होती हैं. इस दौरान आध्यात्मिक नगरी की शोभा देखते बनती है. पौष पूर्णिमा के दिन कल्पवास मेले का पहला बड़ा स्नान होता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)