Kamakhya Temple River turns red : देवी के शक्तिपीठों में गुवाहाटी के कामाख्‍या देवी मंदिर का विशेष स्‍थान है. जब अपने पति भगवान शिव के अपमान के बाद देवी सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर आत्‍मदाह कर लिया तो शिव जी उनके शरीर को लेकर धरती पर घूम-घूमकर विलाप करने लगे. शिव जी के क्रोध से कहीं प्रलय ना आ जाए इसलिए भगवान विष्‍णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए. ये टुकड़े जहां-जहां गिरे, उन्‍हें शक्तिपीठ कहा गया. कामाख्‍या देवी मंदिर में माता सती की योनि गिरी थी. इसलिए इस मंदिर में माता की योनि की पूजा की जाती है. इस मंदिर की देवी को ब्‍लीडिंग देवी भी कहा जाता है क्‍योंकि देवी माता को मासिक धर्म आते हैं. 


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साल में एक बार रजस्‍वला होती हैं देवी मां 


देवी कामाख्या को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहा जाता है. ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां देवी की योनि पूजा की जाती है. इस मंदिर में कोई भी मूर्ति नहीं है. साथ ही साल में एक बार देवी कामाख्या को मासिक धर्म भी होता है. इस समय उनकी योनी से रक्‍त बहता है. हर साल जून महीने में कामाख्या देवी का रजस्वला स्वरूप सामने आता है. इस दौरान 3 दिनों के लिए मंदिर को बंद कर दिया जाता है और तभी यहां का मशहूर अंबुबाची मेला लगता है. जिसमें दुनिया भर से तांत्रिक पहुंचते हैं.


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लाल हो जाता है सफेद कपड़ा 


जब देवी माता का मासिक धर्म आता है तो मंदिर के गर्भगृह में सफेद कपड़ा रखकर मंदिर को बंद कर दिया जाता है. 3 दिन बाद जब मंदिर खोला जाता है तो कपड़ा लाल मिलता है. भक्‍तों को प्रसाद के रूप में यही कपड़ा बांटा जाता है. 


नदी का पानी भी हो जाता है लाल 


जब माता 3 दिनों तक मासिक धर्म में रहती हैं तो इस मंदिर के करीब से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल हो जाता है. इस नदी के किनारे नीलाचल पर्वत पर ही कामाख्या देवी का मंदिर है. इस तरह हर साल माता को मासिक धर्म आने और इसके साथ ही ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल हो जाना आज भी रहस्‍य है. हर साल कामाख्‍या देवी के इस चमत्‍कारिक मंदिर में लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)