हनुमान जयंती पर बन रहा है ये शुभ संयोग, ऐसे करें बजरंगबली की पूजा-अर्चना, पूरी होगी मनोकामना
पुराणों के अनुसार, चैत्र माह की पूर्णिमा को पवनपुत्र हनुमान का जन्म हुआ था. इसलिए आज हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हनुमान प्राकट्य दिवस यानि हनुमान जयंती मना रहे है.
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में हनुमान जयंती का विशेष महत्व है. पुराणों के अनुसार, चैत्र माह की पूर्णिमा को पवनपुत्र हनुमान का जन्म हुआ था. आज चैत्र मास की पूर्णिमा है, इसलिए आज हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हनुमान प्राकट्य दिवस यानि हनुमान जयंती मना रहे है. हनुमान जयंती पर बजरंगबली की विशेष पूजा की जाती है. इस बार हनुमान जयंती पर विशेष संयोग बन रहा है, जो काफी फलदायक है.
ये है शुभ योग
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा और चित्र नक्षत्र का संयोग होने से ये शुभ योग बन रहा है. ज्योतिषाचार्य डॉ. दीपक शुक्ला के मुताबिक, आज हनुमान जी की विशेष पूजा और व्रत रखने से धन लाभ और सुख शांति का सोभाग्य प्राप्त होगा.
ऐसे करें पूजा-अर्चना
इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान श्रीराम, माता सीता और बजरंगबली का स्मरण करें. स्नान के बाद हनुमान जी को शुद्ध जल से स्नान करवाएं, फिर सिंदूर और चांदी का वर्क चढ़ाएं. इसके बाद सुगंधित फूल और फूलों की माला एवं नारियल चढ़ाएं. हनुमान जी मूर्ति के वक्ष स्थल यानी हृदय वाले स्थान पर चंदन से श्रीराम लिखें. हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें. इसके बाद भगवान श्री राम 101 बार जप करें. आखिरी में धूप दीप से पवनपुत्र का आरती करें और प्रसाद का भोग लगाकर प्रसाद बांट दें.
शिव के 11वें अवतार हैं हनुमानजी
हनुमानजी की जन्म कथा समुद्रमंथन के बाद भगवान शिव ने भगवान विष्णु का मोहिनी रूप देखने की इच्छा प्रकट की थी, जो उन्होनें समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों को दिखाया था. उनकी इच्छा का पालन करते हुए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया. भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्यपात कर दिया. पवनदेव ने शिवजी के वीर्य को वानर राजा केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया. इस तरह अंजना के गर्भ से वानर रूप हनुमान का जन्म हुआ. उन्हें शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता है.
बाल ब्रह्मचारी थे पवनपुत्र
शास्त्रों के अनुसार, हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे, इसलिए इन्हें जनेऊ भी पहनाया जाता है. कहा जाता है भगवान श्रीराम की लंबी आयु के लिए पवनपुत्र ने अपने शरीर पर सिंदूर लगा लिया था और इसी के कारण उन्हें भक्तों का सिंदूर चढ़ाना बहुत अच्छा लगता है.