Vamana Jayanti Date: भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में द्वादशी तिथि को भगवान नारायण ने वामन अवतार लिया था,इसलिए इस दिन वामन जयंती मनाई जाती है. इस बार यह जयंती 26 सितंबर को मनाई जाएगी. इस पर्व की पूजन विधि के अनुसार भगवान की प्रतिमा के समक्ष 52 पेड़े और 52 दक्षिणाएं रख कर पूजन किया जाता है. भगवान वामन का भोग लगाकर सकोरों अर्थात मिट्टी के बाउल में दही, चावल, चीन, शरबत के साथ दक्षिणा रख कर ब्राह्मण को दान देने से व्रत की पूर्णता होती है. कुछ क्षेत्रों में इस अवसर पर ब्राह्मण तथा देवताओं के निमित्त दही, सोटा, माला, गोमुखी, कमंडल, छाता, खड़ाऊं तथा दक्षिणा सहित धार्मिक पुस्तक देने की परम्परा है. 


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व्रत कथा


क्षीरसागर के मंथन में सुरों के हाथ में अमृत लग गया तो असुरों ने देवताओं पर चढ़ाई कर दी, जिसमें दैत्यराज बलि को हार का मुंह देखना पड़ा. बलि ने गुरु शुक्राचार्य की शरण ली और उनसे ऐसी अनोखी शक्ति प्राप्त की कि तीनों लोकों को जीत कर स्वर्ग हथिया लिया. स्वर्ग का अधिपति बनने के बाद असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने बलि को विधिपूर्वक शतकेतु बनाने के उद्देश्य से अश्वमेध यज्ञ कराना शुरू किया. इससे देवताओं में हड़कंप मच गया. देवताओं को दुखी देख देवमाता अदिति ने अपने पति महर्षि कश्यप को सारा हाल सुनाया. महर्षि के सुझाव पर अदिति ने विशेष अनुष्ठान किया, जिसके फलस्वरूप भगवान विष्णु वामन ब्रह्मचारी अवतरित हुए और सौवें अश्वमेध के दिन राजा बलि के यज्ञ मंडप में जा पहुंचे. 


दैत्यराज बलि बहुत बड़ा दानी था, उसकी इसी कमजोरी का लाभ उठाने के लिए महा तेजस्वी ब्रह्मचारी वामन के यज्ञ मंडप में पहुंचते ही बलि प्रसन्न हुए और उनका स्वागत करते हुए आने का उद्देश्य पूछा. तब वामन वेशधारी विष्णु जी ने कहा, मैं दीन हीन ब्राह्मण हूं और निष्काम भाव से जीता हूं फिर भी तुम कुछ दान देना चाहते हो तो तीन पग धरती दे दो ताकि मैं उसी में विश्राम स्थल बनाकर रहूं. तब तक दैत्यराज के गुरु शुक्राचार्य पहचान गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना किया लेकिन महादानी बलि ने तीन पग धरती देने का वचन देते हुए संकल्प लिया तो विष्णु जी ने विराट रूप धारण करते हुए एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और अंगूठे से ब्रह्मलोक को नापने के बाद बलि के लिए कुछ नहीं बचा तो बलि ने अपना शरीर समर्पित किया. इस पर उन्होंने तीसरा पांव उसकी पीठ पर रख कर पाताल लोक रहने को भेज दिया. इस पर देवता प्रसन्न हुए और पुनः देवलोक में रहने लगे.