Maa Chamunda: दैत्यराज शुंभ को जैसे ही यह समाचार मिला कि हिमालय पर्वत पर बैठी देवी अंबिका और उनके वाहन सिंह ने असुरों की विशाल सेना के साथ सेनापति धूम्रलोचन का अंत कर दिया है तो उसे बहुत क्रोध आया. अब शुंभ ने अपने महादैत्य बलशाली चंड और मुंड को बहुत बड़ी सेना के साथ भेजा. इस सेना के असुर और दैत्य सैनिकों के पास हर तरह के अस्त्र और शस्त्र थे. गिरिराज हिमालय के सोने के समान चमक रहे शिखर पर देवी को सिंह के ऊपर बैठे देखा कि वह मंद मंद मुस्कुरा रही हैं. उन्हें पकड़ने के लिए दैत्य उनकी ओर हुंकार करते हुए दौड़े. सभी कोई न कोई शस्त्र लिए थे और उनमें से कुछ देवी के ठीक पास में आकर खड़े हो गए. 


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इन लोगों को अपने निकट आया देखकर देवी को भी बहुत क्रोध आया. वह विकराल काली के रूप में प्रकट हुई, उनके हाथों में तलवार, पाश और कुछ अन्य विचित्र शस्त्र थे. उनके गले में नरमुंडों की माला थी. दुबली-पतली केवल हड्डियों का ढांचा होने के कारण वह अत्यंत भयंकर जान पड़ती रही थीं. विशाल मुख के बाहर जीभ लपलपा रही थी.


दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय के अनुसार, भयंकर गर्जना करते हुए वह महाकाली देवी दैत्यों की सेना पर टूट पड़ीं और उनको मुंह में डालकर खाने लगीं. कितने ही हाथियों को पकड़ कर वह अपने मुख में डाल लेती थीं. घोड़े, रथ, सारथी, सैनिकों और योद्धाओं को वह यूं ही मुंह में डाल कर चबा डालतीं. असुरों की तरफ से चलाए और फेंके जा रहे हथियारों को वह हाथों में पकड़ कर क्रोध में अपने दांतों से पीस डालती. माता काली ने बलवान और दुरात्मा दैत्यों की सारी सेना को ही रौंद डाला, कुछ को मार कर भगा दिया और कुछ को खा लिया. 


यह नजारा देख चंड उनकी ओर दौड़ा और महादैत्य मुंड ने बाणों की इतनी जबरदस्त वर्षा कर देवी को ढकने की कोशिश की. देवी ने एक बड़ी तलवार लेकर “हं” का उच्चारण करते हुए चंड पर धावा बोला और उसके बाल पकड़ कर उसी तलवार से मारकर सिर और धड़ अलग कर दिया. चंड को मारा देख मुंड दौड़ा तो उसे भी उसी तलवार से धरती पर सुला दिया. दोनों की मौत देख बची खुची असुरों की सेना भाग खड़ी हुई. दोनों के मस्तक हाथ में लेकर वह महाकाली देवी चंडिका के सामने पहुंचीं और बोली इन दो महा पशुओं को मै तुम्हें भेंट देती हूं, अब शुंभ और निशुंभ का वध तुम खुद ही करना. इस पर चंडिका देवी ने कहा कि तुम चंड और मुंड को लेकर आई हो, इसलिए संसार तुम्हें चामुंडा के नाम से जानेगा. 


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