Chandra ka kalank: पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा का जन्‍म समुद्र मंथन से हुआ था. समुद्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद जब शिव जी का कंठ नीला पड़ गया, तब उसे शीतल करने के लिए चंद्रमा उनके मस्‍तक पर निवास करने लगे. वहीं कुछ कथाओं में ऐसा भी उल्‍लेख मिलता है कि चंद्रमा की उत्‍पत्ति ब्रह्माजी की कृपा से हुई है. फिर चंद्रमा के ही प्रताप से धरती पर विभिन्‍न दिव्‍य औषधियां पैदा हुईं. इसके अलावा चंद्रमा पर कलंक लगने और उसके आकार के रोज घटने-बढ़ने के पीछे भी एक रोचक पौराणिक कथा है. 


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पत्‍नी प्रेम के कारण मिला था चंद्रमा को श्राप 


माना जाता है कि चंद्रमा की 27 पत्नियां थीं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था. ये सभी कन्याएं 27 नक्षत्रों की प्रतीक मानी जाती हैं. इन्ही 27 नक्षत्रों के योग से एक चंद्रमास पूरा होता है. इन 27 पत्नियों में से उन्‍हें रोहिणी नाम की पत्‍नी सबसे ज्‍यादा प्रिय थीं. बुध ग्रह को चंद्रमा और रोहिणी की ही संतान माना जाता है. 


कहते हैं कि चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिनी से इतना प्रेम करते थे कि उनकी अन्‍य 26 पत्नियां दुखी रहने लगीं. तब उन्‍होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चांद की शिकायत कर दी. बेटियों के दुख से क्रोधित दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया, जिससे चंद्रमा को क्षयरोग हो गया. श्राप के कारण चंद्रमा का तेज क्षीण पड़ने लगा. पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी इसका बुरा असर पड़ने लगा.


...इसलिए घटने-बढ़ने लगा चांद का आकार 


परेशान होकर चंद्रमा भगवान विष्णु के पास गए और उन्‍होंने मध्यस्थता की तब जाकर राजा दक्ष का गुस्सा कम हुआ. इसके बाद उन्होंने चंद्रमा को इस शर्त पर फिर से चमकने का वरदान दिया कि चांद का प्रकाश कृष्ण पक्ष में क्षीण होता जाएगा और अमावस्या पर चांद का प्रकाश पूरी तरह गायब हो जाएगा. लेकिन शुक्ल पक्ष में चंद्रमा का प्रकाश बढ़ेगा और पूर्णमासी को चंद्रमा का तेज पूर्ण रूप में दिखेगा.


ये है चांद पर कलंक लगने की कथा 


वहीं चांद पर लगे दाग को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं है. एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार चंद्रमा को अपने तेज और रूप रंग पर इतना अभिमान हो गया कि उन्होंने भगवान गणेश का भी अपमान कर दिया. इससे गणपति नाराज हो गए और उन्‍होंने चंद्रमा को बदसूरत होने का श्राप देते हुए कहा जो भी चांद को देखेगा उस पर झूठा कलंक लगेगा. बाद में चंद्रमा ने गणेश जी को श्राप वापस लेने के लिए खूब मनाया, तब गणपति बप्‍पा ने कहा कि जो व्‍यक्ति भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चांद देखेगा उसे अपने जीवन में किसी कलंक का सामना करना पड़ेगा. इस कारण इस चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते हैं. 


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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)