Panch Agni Akhada Tradition: श्रीपंच अग्नि अखाड़ा सनातन धर्म और संस्कृति के लिए समर्पित एक प्राचीन संस्था है, जिसका आधार प्रतिष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा है. अखाड़े के ब्रह्मचारी जप-तप और धर्म सेवा में लीन रहते हैं. सदियों पुरानी परंपरा का यह अखाड़ा आज भी ईमानदारी से पालन कर रहा है. हालांकि, कुछ अखाड़ों ने सामाजिक समरसता के लिए सभी वर्गों के लिए अपने द्वार खोल दिए हैं, लेकिन अग्नि अखाड़ा अब भी अपनी परंपराओं पर कायम है.इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मणों को ही संन्यास की दीक्षा दी जाती है. ब्राह्मण संन्यासियों को "ब्रह्मचारी" कहा जाता है. वे मांस-मदिरा का सेवन तो दूर, इनके संपर्क में भी नहीं आते. अगर ऐसा पाया गया, तो दोषी को अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है. पिछले एक दशक में 50 से अधिक ब्रह्मचारी इस कारण अखाड़े से निकाले जा चुके हैं.


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ये हैं पंच अग्नि अखाड़ा की परंपरा और विशेषताएं


पंच अग्नि अखाड़े की आराध्य वेद माता गायत्री हैं. ब्रह्मचारी बनने के लिए वेद-पुराणों का ज्ञान और अविवाहित होना अनिवार्य है. उनकी पहचान जनेऊ और सिर पर शिखा से होती है. इन्हें निष्ठावान ब्रह्मचारी कहा जाता है. 


शंकराचार्य पद


अग्नि अखाड़ा से दीक्षित ब्रह्मचारी ही आचार्य और शंकराचार्य पदवी के योग्य माने जाते हैं. चार पीठों (ज्योतिष, पुरी, श्रृंगेरी और  द्वारका) के शंकराचार्य के उत्तराधिकारी बनने के लिए ब्रह्मचारी होना अनिवार्य है.


अग्नि अखाड़ा की स्थापना और कार्य


पंच अग्नि आखाड़ा की स्थापना साल 1136 में हुई थी. इस अखाड़े का मुख्यालय काशी (वाराणसी) है, जबकि इसकी शाखाएं प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक, जूनागढ़ और अहमदाबाद में भी हैं. इसके साथ ही इस अखाड़े के कार्यकारी मंडल में 28 श्री महंत और 16 सदस्य शामिल हैं. 


चार पीठों के प्रतिनिधि होते हैं ब्रह्मचारी


अखाड़ा चार पीठों (ज्योतिष, पुरी, श्रृंगेरी, द्वारका) के लिए चतुष्नाम ब्रह्मचारी नियुक्त करता है. इन्हें चार नामों - आनंद, चेतन, प्रकाश और स्वरूप के तौर पर बांटा गया है, जो क्रमशः  ज्योतिष, पुरी, श्रृंगेरी और द्वारका पीठ का प्रतिनिधित्व करते हैं. 


पंच अग्नि अखाड़े में ब्रह्मचारी बनने की क्या है प्रक्रिया


अग्नि अखाड़ा में ब्रह्मचारी बनना कठिन है. अखाड़े के राष्ट्रीय महामंत्री श्रीमहंत सोमेश्वरानंद ब्रह्मचारी के अनुसार, देशभर में सिर्फ 4,000 ब्रह्मचारी हैं. ब्रह्मचारी बनने की प्रक्रिया में विशेष संस्कारों और कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है, जो कुछ इस प्रकार है:- 


1. पंचद्रव्य स्नान और पंचभूत संस्कार
2. शिखा और जनेऊ का नया उपनयन
3. रुद्राक्ष पहनाना- पंचमुखी या 11 मुखी रुद्राक्ष का कंठी धारण कराई जाती है, जिसे जीवन भर नहीं उतारा जाता.
4. संस्कार की समाप्ति- एक केश काटकर उसे ब्रह्मविद्या के साथ गंगा में विसर्जित किया जाता है.


पद और कार्यकाल


ब्रह्मचारी बनने के बाद महंत, श्रीमहंत, और थानापति जैसे पद दिए जाते हैं. कुंभ मेले का प्रभार सचिव या महामंत्री को सौंपा जाता है.
अखाड़े में 60 महंत और चार सचिव हैं. सभापति और महामंत्री का कार्यकाल छह वर्षों का होता है. अग्नि अखाड़ा, सनातन परंपराओं और धर्म का पालन करने का एक जीवंत उदाहरण है, जो कठोर अनुशासन और धार्मिक निष्ठा के साथ कार्य करता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)